प्रसिद्ध समाज सेवक बाबा आम्टे बचपन में बात-बात पर रूठ जाया करते थे। एक बार उनके एक घनिष्ठ मित्र ने उनसे ऐसी बात कह दी जिसका उन्हें बहुत बुरा लगा। नाराज होकर उन्होंने उससे बोलना ही छोड़ दिया। वह मित्र बाबा आम्टे के प्रति बेहद स्नेह रखता था। उसने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब वह उसके समझाने पर भी नहीं माने तो उसने उनकी मां से यह बात बता दी।
रूठने वाली बात सुनकर बाबा आम्टे की मां ने मित्र को आश्वासन दिया कि उनका बेटा ज्यादा दिन तक उससे रूठा नहीं रहेगा और कुछ दिन बाद स्वयं आकर उससे बात करेगा। कुछ ही दिनों बाद बाबा आम्टे की मां उन्हें बगीचे में लेकर गई। उस समय पतझड़ का मौसम चल रहा था और पेड़ के गले-सड़े व पीले पत्ते झड़-झड़ कर गिर रहे थे। मां ने उन पत्तों को बाबा आम्टे को दिखाते हुए कहा, 'बेटा, देखो ये पुराने पत्ते किस प्रकार अनायास झड़ रहे हैं। हमारे पुराने मनमुटाव, घृणा, जलन आदि को भी इसी तरह झड़ जाना चाहिए। हमें अपने मन के इन पीले, सड़े-गले पत्तों को भी झटककर फेंक देना चाहिए क्योंकि ये तनाव व दुख का कारण तो बनते ही हैं साथ ही हमारी उन्नति में भी बाधक होते हैं।' ममतामयी मां के इन प्रेरक शब्दों ने बाबा आम्टे पर गहरा असर किया। वह उसी समय अपने उस मित्र के घर जा पहुंचे जिससे वह रूठ गए थे। उन्होंने उससे बातचीत शुरू कर दी। इसके साथ ही उन्होंने जरा-जरा सी बातों पर रूठने को आदत छोड़ दी।
Friday, October 14, 2011
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