Tuesday, October 18, 2011

मीठी बोली

मधुप नामक एक व्यक्ति शहद बेचा करता था। उससे कोई शहद खरीदे या नहीं पर वह सभी से बड़े प्रेम से और मधुर वाणी में बात करता था। उसके स्वर में इतनी मिठास थी कि कई बार लोग उसकी बोली से ही प्रभावित होकर शहद खरीद लेते थे। इस प्रकार उसकी दिन-दूनी, रात चौगुनी तरक्की होती जा रही थी। कुछ ही समय में वह इतना संपन्न हो गया कि उसने अपनी एक दुकान खोल ली। दुकान खोलने पर भी उसका व्यवहार पहले की तरह मधुर बना रहा।

उसके साथ वाली दुकान पर एक व्यक्ति फल बेचा करता था। मधुप के आने के बाद उसे ऐसा महसूस होने लगा कि उसके व्यापार में घाटा हो रहा है। वह मधुप से ईर्ष्या करने लगा। उसने मधुप को सबक सिखाने का निश्चय किया। उसने भी फलों के बजाय शहद बेचना आरंभ कर दिया। फिर भी सभी ग्राहक मधुप की दुकान पर ही जाते और उसकी दुकान पर केवल मक्खियां भिनभिनाती रहतीं। यह देखकर वह चिड़चिड़ा रहने लगा।

उसकी इस स्थिति से उसकी पत्नी बहुत दुखी रहती थी। एक दिन उसने अपने पति को समझाया, 'तुमने मधुप की देखादेखी शहद तो रखना शुरू कर दिया मगर उसके जैसी मिठास अपनी बोली में क्यों नहीं डाली? यदि वाणी मधुर न हो तो अच्छे से अच्छा व्यवसाय भी ठप हो जाता है। व्यवसाय क्या, जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति असफल हो जाता है। तुम अपना पुराना फलों का व्यापार ही करो।

बस अपने अंदर परिवर्तन लाओ। अपनी कर्कश वाणी को तिलांजलि देकर मधुर वाणी से नाता जोड़ो, तुम्हारा व्यापार भी आगे बढ़ेगा और तुम्हारी किसी से दुश्मनी भी नहीं होगी।' पत्नी की बात दुकानदार की समझ में आ गई। अगले ही दिन से उसने अपना पुराना कारोबार शुरू कर दिया और अपनी बोली में मिठास डाली। उसके फलों की बिक्री तेजी से होने लगी। इस बीच उसकी मधुप से भी दोस्ती हो गई। उसका व्यवसाय भी मधुप के कारोबार की तरह आगे बढ़ने लगा।

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