उन दिनों गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे। वहां उनके कई ईसाई मित्र थे, जो बाइबल के जानकार थे। वे गांधीजी को अक्सर अपने धर्म के बारे में बताते रहते थे। एक दिन उनमें से एक ने कहा, 'हमने वेद, पुराण और रामायण के बारे में काफी सुना है मगर उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। आप कुछ बताएं।' गांधीजी ने कहा, 'हमारे ज्यादातर धर्म ग्रंथ संस्कृत में है और मुझे संस्कृत नहीं आती।'
ईसाई मित्र बोला, 'आप कैसे भारतीय हैं कि आप को अपनी संस्कृति के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं है।' गांधीजी चुप रह गए। दूसरे दिन से उन्होंने दोस्तों से मिलना छोड़ दिया। उन्होंने तय कर लिया कि जब तक वह भारतीय संस्कृति और धर्मों का ज्ञान नहीं प्राप्त कर लेते तब तक किसी से नहीं मिलेंगे।
गांधीजी सुबह पंद्रह मिनट मुंह धोने और बीस मिनट स्नान करने में लगाते थे। उन्होंने इस समय का उपयोग करने की सोची। वह जहां दातुन और स्नान करते थे वहां की दीवार पर गीता के श्लोक लिख कर चिपका देते और उसे रटते। याद होने पर दूसरा श्लोक चिपकाते। इस तरह एक महीने में उन्हें तेरह अध्याय याद हो गए।
उसके साथ ही उन्होंने विवेकानंद की पुस्तकों और पतंजलि के योगदर्शन का भी अध्ययन किया। फिर एक दिन वह अपने मित्रों की मंडली में पहुंचे और धाराप्रवाह श्लोक पढ़ने लगे। इस पर उनके ईसाई मित्र ने कहा, 'आप तो कहते थे कि आपको संस्कृत नहीं आती।' गांधीजी बोले, 'यह सब मैंने इच्छाशक्ति से हासिल किया है। किसी में इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं।'
Saturday, October 22, 2011
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