एक बार सेवाग्राम में गांधीजी से एक कार्यकर्ता ने पूछा, 'आप के जीवन पर किस व्यक्ति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ा?' गांधीजी ने कहा, 'भाई रायचन्द्र, टाल्स्टाय और रस्किन से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं, मगर मेरे ऊपर सबसे ज्यादा प्रभाव भाई रायचन्द्र का ही पड़ा है।'
कार्यकर्ता ने पूछा, 'वह कैसे?' गांधीजी ने कहा, 'भाई रायचन्द्र का बहुत बड़ा व्यापार था। वह हीरे मोती की परख करते थे और लाखों का कारोबार करते थे।' कार्यकर्ता ने गांधीजी को आश्चर्य से देखा। उसे यह बात थोड़ी अटपटी लग रही थी कि गांधीजी आखिर एक व्यापारी से क्यों प्रभावित हुए। गांधीजी ने उसकी मनोदशा को भांपकर कहा, 'लेकिन वह साधारण कारोबारी नहीं थे। वह एक संत थे। उनकी गद्दी पर कोई और चीज हो या न हो, कोई धार्मिक पुस्तक अवश्य रखी होती थी। बगल में वह एक डायरी भी रखते थे। जब भी उन्हें फुरसत मिलती, वह पढ़ने लगते। पुस्तक में मन को छूने वाली कोई बात होती तो वह उसे डायरी में नोट कर लेते। जो व्यक्ति लाखों की लेन- देन की बात करके फौरन ज्ञान की पुस्तक पढ़ने लगे और आत्मज्ञान की बात लिखने लगे, वह व्यापारी नहीं बल्कि शुद्ध ज्ञानी कहा जाएगा। मेरे साथ उनका कोई स्वार्थ नहीं था। मगर जब भी मैं उनकी दुकान पर पहुंचता, वह धर्म चर्चा शुरू कर देते थे। उस समय मुझे धर्म चर्चा में रुचि नहीं थी फिर भी मैं भाई रायचन्द्र की बातों को ध्यान से सुनता था। इसके बाद मैं कई संत-महात्माओं से मिला, मगर किसी ने मुझे इतना प्रभावित नहीं किया। मुझसे लोग पूछते हैं कि आखिर रायचन्द्र में क्या खास बात है जिससे मैं इतना प्रभावित हुआ। मुझे उनके कर्मयोग ने प्रभावित किया।
आम धारणा यह है कि एक काम करते हुए दूसरा काम करना कठिन है। मगर रायचन्द्र को देख कर लगा कि मनुष्य सांसारिक जीवन जीते हुए भी संत और ज्ञानी हो सकता है। इसी कारण मुझे रायचन्द्र सच्चे कर्मयोगी नजर आए।'
Thursday, October 20, 2011
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