अंग्रेजी के विश्वविख्यात लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ बेहद हंसमुख और मिलनसार थे। कई बार वह अपनी हाजिरजवाबी और सटीक टिप्पणी से लोगों को चमत्कृत कर देते थे। उनकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि वह जहां भी जाते, लोग उन्हें घेर लेते थे। एक बार वह किसी कॉलेज के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो हमेशा की तरह उनसे ऑटोग्राफ लेने वालों की भीड़ लग गई। एक नौजवान ने ऑटोग्राफ बुक उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा, 'सर, मुझे साहित्य का बहुत शौक है और मैंने आपकी सभी पुस्तकें पढ़ी हैं। आप मेरे प्रिय लेखक हैं। मैं अपने जीवन में अभी तक अपनी अलग पहचान नहीं बना पाया हूं लेकिन बनाना चाहता हूं। मैं क्या करूं? इसके लिए आप मुझे कोई संदेश देकर अपना हस्ताक्षर करें तो बहुत मेहरबानी होगी।'
बर्नार्ड शॉ नौजवान की बात पर मुस्कराए फिर उन्होंने उसके हाथ से हस्ताक्षर पुस्तिका ली और उस पर संदेश लिखकर हस्ताक्षर किया और पुस्तिका लौटा दी। नौजवान ने पुस्तिका खोलकर देखा तो हैरान रह गया। बर्नार्ड शॉ ने लिखा था, 'अपना समय दूसरों के हस्ताक्षर इकट्ठा करने में नष्ट न करें, बल्कि खुद को इस योग्य बनाएं कि दूसरे आपके हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए लालायित रहें। अपनी अलग पहचान बनाने के लिए हर पल मेहनत करना और संघर्षरत रहना आवश्यक है।' यह पढ़कर नौजवान ने कहा, 'सर, मैं आपके इस संदेश को जीवन भर याद रखूंगा और अपनी एक अलग पहचान बनाकर दिखाऊंगा।' इस पर जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने नवयुवक की पीठ थपथपाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी।
Thursday, October 20, 2011
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