महात्मा गांधी अपना जन्मदिन बड़ी सादगी से साबरमती आश्रम के कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर मनाते थे। एक बार सेवा ग्राम के लोगों ने उनका जन्मदिन अपने यहां मनाने का फैसला किया। जन्मदिन पर बड़ी संख्या में वहां के लोग गांधी जी को मुबारकबाद देने पहुंचे।
सेवा ग्राम में गांधी जी का जन्म दिन मनाया जा रहा है, यह सोच कर कस्तूरबा गांधी पास के गांव से कुछ दीये ले आईं। जब गांधी जी प्रार्थना सभा में पहुंचे तो वहां देसी घी के दीये जलते देख कर वह चौंके मगर उन्होंने कहा कुछ नहीं। प्रार्थना खत्म हुई तो गांधी जी ने पूछा, 'ये दीये कौन लाया है?' बा ने कहा, 'पास के गांव से खरीद कर लाई हूं।' गांधीजी ने फिर पूछा, 'और यह घी कहां से आया?' बा ने कहा, 'वह भी गांव के एक किसान के यहां से लाई हूं।' गांधी जी दुखी मन से बोले, 'आप ने यह अच्छा काम नहीं किया।'
बा कुछ समझ नहीं पाईं। उन्हें चुप देख कर गांधी जी ने फिर कहा, 'आप तो जानती हो कि देश के लाखों किसानों और मजदूरों को सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं होती। खाने की बात तो छोडि़ए, उन्हें तो देसी घी देखने को भी नहीं मिल पाता। इस हालत में हमारे जन्मदिन पर देसी घी का दीया जले यह देश के लोगों के साथ अन्याय है।
देसी घी के दीये जलते देख कर तभी सुख मिलता जब देश के सभी बच्चों को दूध घी खाने को मिले। मुझे तो आश्चर्य है कि आप की आत्मा ने आपको ऐसा कार्य कैसे करने दिया।' बा को गलती का अहसास हो गया। उन्होंने कहा, 'अब ऐसी गलती नहीं होगी।'
Saturday, October 22, 2011
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