Saturday, October 22, 2011
बुढि़या की सीख
एक राजा ने एक बड़ा यज्ञ करने का निश्चय किया। उसने सोचा कि इस अवसर पर राज्य के सारे गांवों से दूध इकट्ठा करके ब्रह्मभोज किया जाए। उसने आदेश दिया कि निर्धारित तिथि को सभी किसान अपने घरों से दूध लाकर महल के बाहर रखे बर्तन में डालें। राजा ने यह भी हुक्म दिया कि उस दिन जिसके घर जितना दूध हो वह सारा का सारा लाया जाए। राजा के हुक्म का पालन हुआ। किसी ने एक बूंद भी दूध अपने घर नहीं रखा। सारा दूध महल के बाहर रखे बर्तन में डाल दिया। राजा दूध देखने आया तो उसे यह जानकर हैरानी हुई कि राज्य का सारा दूध आने पर बर्तन आधा भी नहीं भरा। उसने सिपाहियों को गांव-गांव जाकर हर घर से दूध लाने को कहा। उन्होंने घर-घर देख डाला पर किसी के यहां दूध नहीं मिला। सिपाही निराश लौट आए। राजा भी अचंभे में था। तभी एक बुढि़या छोटे से लोटे में दूध लेकर आई। उसने जैसे ही बर्तन में दूध डाला बर्तन लबालब भर गया। सभी आश्चर्यचकित होकर यह अजीब दृश्य देख रहे थे। राजा ने उस बुढि़या से पूछा, 'क्या तुम्हें कोई जादू आता है?' बुढि़या बोली, 'जादू क्या होता है महाराज! मैंने आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया। मैंने सुबह उठकर गाय को दुहा। पहले उसके बछड़े ने आधा दूध पिया, बाकी बचे आधे दूध में थोड़ा-थोड़ा कुत्ते और बिल्ली ने पिया। बचा हुआ दूध मैंने आपके बर्तन में डाल दिया।' राजा ने क्रोधित होकर कहा, 'मगर तूने ऐसा क्यों किया? तूने भगवान को बचा हुआ दूध दिया।' इस पर बुढि़या ने कहा, 'महाराज, भगवान का पेट भरना है तो उसके बनाए हुए जीवों का पेट भरना चाहिए। आपने घर-घर का सारा दूध मंगवा लिया। आज कितने बच्चे दूध के बगैर भूखे होंगे। क्या भगवान ऐसा दूध पिएंगे? शायद इसी से यह बर्तन खाली था।' बुढि़या की बात सुनकर राजा की आंखें खुल गई। उसने सारा दूध घर-घर बंटवा दिया।
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