पुराने जमाने की बात है। एक राजा था , जिसके तीन पुत्र थे। वह अपने तीनों पुत्रों को बहुत चाहता था , लेकिन उनके भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित भी रहता था। एक दिन राजा अपने तीनों पुत्रों के साथ नगर भ्रमण के लिए निकला। रास्ते में एक तेजस्वी महात्मा मिले। राजा ने उन्हें नमस्कार किया और अपने पुत्रों के भविष्य के विषय में उनसे पूछा। महात्मा ने राजा के तीनों पुत्रों को प्यार से बुलाया और उन तीनों को दो - दो केले खाने को दिए। एक बच्चे ने केले खाकर छिलके रास्ते पर फेंक दिए।
दूसरे ने केले खाकर छिलके रास्ते में न फेंककर कूड़ेदान में डाले। और तीसरे ने छिलके फेंकने के बजाय गाय को खिला दिया। महात्मा जी यह सब बड़े गौर से देख रहे थे। उन्होंने राजा को अलग ले जाकर कहा , ' तुम्हारा पहला पुत्र मूर्ख और उद्दंड है , जबकि दूसरा गुणी और समझदार है। तीसरा पुत्र सज्जन और उदार बनेगा। हो सकता है वह बड़ा समाजसेवी बने। ' महात्मा की बात सुनकर राजा ने पूछा , ' आपने कौन सा गणित लगाकर जवाब दिया ?' महात्मा बोले , ' व्यवहार के गणित से बढ़कर निर्धारण करने का और कोई उपाय नहीं होता। आपके आचरण से आपके विचार और स्वभाव का पता चलता है। हम जैसा आचरण करते हैं वैसा ही बनते भी हैं। मैंने एक मामूली आचरण के आधार पर आपके तीनों पुत्रों के स्वभाव का पता लगाया है। मूलभूत स्वभाव का पता चलने के बाद उसमें परिवर्तन के लिए प्रयास किया जा सकता है। ' यह कहकर महात्मा ने राजा और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया और चल पड़े।
Saturday, October 22, 2011
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