किसी गांव में रमेश और दीपक नामक दो मूर्तिकार रहते थे। रमेश की बनाई प्रतिमाएं इतनी सुंदर होती थीं कि लोग उन्हें मुंहमांगे दामों पर खरीद लेते थे। दीपक की मूर्तियां कोई नहीं खरीदता था।
एक दिन दीपक ने देखा कि रमेश प्रतिमाएं बनाने में व्यस्त है। उस समय पास से एक सेठ की बरात गुजर रही थी। बरात में बहुत सारे लोग शामिल थे। ढोल-नगाड़े बज रहे थे और आतिशबाजी भी हो रही थी। रमेश प्रतिमाएं बनाने में व्यस्त रहा, उसने बरात की ओर देखा तक नहीं। यह देखकर दीपक रमेश के पास पहुंचा और बोला, 'अभी यहां से बरात गुजरी थी। गांव के सभी लोगों ने अपने-अपने काम छोड़कर बरात को देखा, पर तुमने तो नजर भी नहीं उठाई।' दीपक की बात सुनकर रमेश भौंचक रह गया।
उसने आश्चर्य से कहा, 'तुम किस बरात की बात कर रहे हो। मैंने तो किसी बरात के गुजरने की आवाज नहीं सुनी।' दीपक ने कहा, 'अरे भाई कुछ ही देर पहले एक बरात गुजरी है। सभी ने उसे देखा और ढोल-नगाड़ों की आवाज भी सुनी। ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हें पता ही न लगा हो?' दीपक की बात सुनकर रमेश बोला, 'मैं जब अपना कार्य करता हूं तो मेरा संपूर्ण ध्यान सिर्फ उस कार्य पर ही केंद्रित रहता है। यहां तक कि उस समय मुझे अपने शरीर की भी सुध नहीं रहती।' रमेश की बात सुनकर दीपक को उसकी सफलता का कारण समझ में गया। वह जान गया कि एक कलाकार के लिए एकाग्रता सबसे बड़ी चीज है। उस दिन से वह भी ध्यान लगाकर काम करने लगा।
Saturday, October 22, 2011
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