Thursday, October 20, 2011

स्वप्न का संदेश

एक संत की साधना और भक्तिमय जीवन की बड़ी ख्याति थी। एक रात उन्होंने स्वप्न देखा कि उनकी मृत्यु हो चुकी है और वह एक देवदूत के सामने खड़े हैं। देवदूत सब मृत लोगों से उनके कर्मों का ब्योरा मांग रहा था। काफी देर बाद जब उनकी बारी आई, तो देवदूत ने उनसे पूछा, 'आप बताएं, आपने जीवन में क्या अच्छे कार्य किए जिनका आपको पुण्य मिला हो?'

संत सोचने लगे- मेरा तो सारा जीवन ही पुण्य कार्यों में व्यतीत हुआ है, मै कौन सा एक काम बताऊं। वह बोले, 'मैं पांच बार तीर्थयात्रा कर चुका हूं।'

देवदूत बोला, 'आपने तीर्थयात्राएं तो कीं, लेकिन आप अपने इस कार्य की चर्चा हर व्यक्ति से करते रहे। इसके कारण आपके सारे पुण्य नष्ट हो गए।' संत को भारी ग्लानि हुई। फिर कुछ हिम्मत कर उन्होंने कहा, 'मैं प्रतिदिन भगवान का ध्यान और उनके नाम का स्मरण करता था।'

देवदूत ने कहा, 'जब आप ध्यान करते और कोई दूसरा व्यक्ति वहां आता, तो आप कुछ अधिक समय तक जप-ध्यान में बैठते थे। चलिए कोई और पुण्य कार्य बताइए।' संत को लगा कि उनकी अब तक की सारी तपस्या बेकार चली गई। उनकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बह निकले। इतने में उनकी नींद खुल गई। वह स्वप्न का संदेश समझ गए। वह समझ गए कि उन्हें अपनी साधना पर गर्व हो गया था। वे अपने त्यागमय जीवन के बदले दूसरों से कुछ अपेक्षाएं रखने लगे थे। उस दिन से उन्होंने स्वयं को बदलने का फैसला किया और सहज होकर साधना करने लगे।

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