एक राजा इस बात से परेशान रहता था कि धर्म और दर्शन को लेकर विचारकों में आपसी सहमति क्यों नहीं बनती। उसने विभिन्न धर्मों के उपदेशकों को बुलाया और सबको कारागार में डालते हुए कहा, 'जब तक आप सब एकमत नहीं हो जाते, एक विचार वाले नहीं हो जाते, तब तक यहीं रहना पड़ेगा।' जब यह बात एक विद्वान आचार्य ने सुनी तो वह राजा के पास गए। राजा ने आचार्य से पूछा, 'महाराज, आपने मेरा नगर देखा है?'
आचार्य बोले, 'हां राजन, मैंने नगर का अवलोकन किया है।' राजा ने फिर पूछा, 'वह कैसा लगा?' आचार्य ने कहा, 'नगर सुंदर है, किंतु अव्यवस्थित है।' राजा ने आश्चर्य से पूछा, 'कैसी अव्यवस्था?' आचार्य बोले, 'बाजार अच्छे नहीं हैं। उसमें सैकड़ों दुकानें हैं। क्या आवश्यकता है इतनी दुकानों की? क्या सब दुकानों को एक कर बड़ी दुकान नहीं बनाई जा सकती थी? जब एक ही बड़ी दुकान होगी तो वह बाजार सुंदर दिखने लगेगा।' इस पर राजा ने कहा, 'यह बात अव्यावहारिक है। आप व्यवहार की दुनिया को नहीं जानते। मनुष्य के जीवन को चलाने के लिए सैकड़ों चीजें चाहिए।
किसी को आटा चाहिए, किसी को नमक और किसी को चावल। किसी को सोना चाहिए तो किसी को चांदी। फिर भला सबकी आवश्यकताएं एक ही दुकान पूरी कर सके, यह कैसे संभव है? एक दुकान मंे इतनी चीजें कैसे रखी जा सकती हैं? कैसे इन्हें बेचा जा सकता है? दुकानें अलग-अलग होने से यह दुविधा नहीं रहती। सबकी आवश्यकताएं पूरी होती हैं और कोई अव्यवस्था नहीं होती।' इस पर आचार्य बोले, 'राजन, आपका कथन बिल्कुल सही है। आप सर्वशक्तिसंपन्न हैं, फिर भी जब आप सभी दुकानों को एक नहीं कर सकते और उन्हें एक करने की आवश्यकता नहीं मानते तो विभिन्न विचारों की दुकान एक कैसे हो सकती है? वे अलग-अलग हैं और उन सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता है।' राजा को बात समझ में आ गई। उसने तत्काल सभी धर्म उपदेशकों को मुक्त कर दिया।
Tuesday, October 18, 2011
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