महात्मा गांधी के पास रोज ढेरों पत्र आते थे। लोग उनसे अपने मन की बात कहते, तरह-तरह के सवाल पूछते और अपने लिए सलाह भी मांगते थे। ऐसे पत्रों की भी कमी नहीं थी, जिनमें उन्हें कोई सुझाव दिया जाता था।
बापू हर किसी के पत्र को बड़े ध्यान से पढ़ते फिर सबको जवाब देने की कोशिश करते थे। एक बार एक व्यक्ति ने महात्मा गांधी को पत्र में लिखा, 'बापू, अब आप वृद्ध हो गए हैं, आपको अपना समय भगवान की भक्ति में लगाना चाहिए। राजनीति और सांसारिक द्वंद्वों को छोड़कर अब आपको भगवान की शरण ग्रहण करनी चाहिए।
आप क्यों बेवजह राजनीति के झंझट में पड़े रहते हैं। इससे आप बहुत परेशान हो जाते होंगे। आपके बारे में सोचकर कष्ट होता है। आप यह सब छोड़ दें।' गांधीजी को यह पत्र बड़ा रोचक लगा। उन्होंने उत्तर दिया, 'बंधु, भगवान के स्मरण के लिए वृद्धावस्था या जीवन का अंतिम समय ही नहीं होता। अब आयु का भरोसा ही नहीं, तो वृद्धावस्था का इंतजार क्यों किया जाए? मेरा तो विश्वास है कि भगवान की भक्ति जीवन भर उसी तरह होनी चाहिए, जैसे शरीर में रक्त प्रवाह होता है।
भगवान का भजन तो स्नान की तरह है। ऐसा नहीं हो सकता कि बचपन और यौवन में कोई स्नान ही न करे और वृद्धावस्था में पहुंचकर प्रभु भक्ति के स्नान से स्वयं को पवित्र बनाए। मैं प्रत्येक अवस्था में प्रभु भक्ति को जरूरी समझता हूं और श्रद्धापूर्वक ईश्वर की आराधना करता हूं।' यह उत्तर पाकर उस व्यक्ति की गांधीजी के प्रति आस्था और बढ़ गई।
Tuesday, October 18, 2011
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