एक भिक्षुक को दिन भर में जो कुछ मिलता था, उसे वह खा-पीकर समाप्त कर देता था। प्राय: उसे आवश्यकता के अनुसार भिक्षा मिल जाया करती थी। एक दिन उसे उसकी जरूरत से ज्यादा एक पैसा मिल गया। वह सोचने लगा-इसका क्या उपयोग करूं? उसने उस एक पैसे को अपने चीथड़े के कोने में बांध लिया और एक पंडित के पास गया। उसने उनसे पूछा, 'महाराज, मैं अपनी संपत्ति का क्या सदुपयोग करूं?' पंडित जी ने पूछा, 'तुम्हारे पास कितनी संपत्ति है?' उसने कहा, 'एक पैसा।' इस पर पंडित जी चिढ़ गए। उन्होंने कहा, 'जा-जा, तू एक पैसे के लिए मुझे परेशान करने आया है।' वह भिक्षुक निराश नहीं हुआ। वह कई पंडितों के पास गया। कहीं हंसी मिली तो कहीं दुत्कार।
किसी सज्जन ने सलाह दी कि पैसा किसी गरीब को दे दो। अब भिक्षुक गरीब की तलाश में चल पड़ा। उसने अनेक भिखारियों से प्रश्न किया कि तुम गरीब हो? परंतु एक पैसे के लिए किसी ने गरीब बनना स्वीकार नहीं किया। तभी भिक्षुक को पता चला कि किसी देश काराजा अपने पड़ोसी राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। उसने लोगों से पूछा, 'राजा चढ़ाई क्यों कर रहे हैं?' लोगों ने बताया 'धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए।' भिक्षुक को लगा कि राजा बहुत गरीब होगा। तभी तो धन-संपत्ति के लिए मारकाट करने पर आमादा है। क्यों न उसे ही पैसा दे दिया जाए।
जब राजा की सवारी उसके पास से गुजरने लगी, तो वह खड़ा हो गया और झटपट अपने चीथड़े में से पैसा निकालकर उसने राजा के हाथ पर डाल दिया। उसने कहा, 'मुझे बहुत दिनों से एक गरीब की तलाश थी। आज आपको पाकर मेरा मनोरथ पूरा हो गया, आप मेरी पूंजी संभालिए।' राजा रुक गया। भिक्षुक ने उसे अपनी कहानी सुनाई तो उसने धावा बोलने का इरादा बदल दिया और सारी फौज के सामने यह बात कबूल की- असली गरीब वह है, जिसके लालच का कोई अंत नहीं।
Saturday, October 22, 2011
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