एक बार मगध की सेना ने कौशल राज्य पर चढ़ाई कर दी और कौशल नरेश को उनके अंगरक्षकों तथा कुछ और व्यक्तियों के साथ एक स्थान पर घेर लिया। यह देखकर कौशल नरेश ने मगध के सेनानायक से कहा कि वह उनके सामने बिना किसी प्रतिरोध के समर्पण कर देंगे यदि उनके साथ आए हुए दस व्यक्तियों को यहां से सकुशल जाने दिया जाए। सेनानायक ने यह शर्त मान ली और दस व्यक्तियों को सकुशल छोड़ दिया।
फिर उसने कौशल नरेश को बंदी बनाकर मगध सम्राट के सामने प्रस्तुत किया। और उन्हें सारा विवरण भी सुनाया। यह सुनकर मगध सम्राट भी हैरान हो गए। उन्होंने कौशल नरेश से पूछा, 'जिन व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए आपने स्वयं को कैद करवा दिया, वे कौन थे?' कौशल नरेश बोले, 'राजन, वे हमारे राज्य के महत्वपूर्ण विद्वान और संत थे। मैं भले मारा जाऊं मगर उनका जीवित रहना जरूरी है। वे रहेंगे तो राज्य में आदर्श, कर्त्तव्य, दया, परोपकार, सत्यनिष्ठा आदि की परंपराएं व भावनाएं जीवित रहेंगी।
ऐसा होने से कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण का कार्य बराबर होता रहेगा तथा उपयुक्त शासक भी पुन: पैदा हो जाएंगे। राष्ट्र की सच्ची संपत्ति उसके श्रेष्ठ नागरिक ही होते है। और उन्हें बनाने वाले होते हैं ये विद्वान और संत।' मगध के राजा कौशल नरेश की ये बातें सुनकर दंग रह गए। उन्होंने कहा, 'जिस राज्य में जनकल्याण में लगे सत्पुरुषों को इतना महत्व दिया जाता है, वहां की शासन-व्यवस्था में परिवर्तन की कोई जरूरत नहीं है। उससे तो हमें भी प्रेरणा लेनी चाहिए।' यह कहकर उन्होंने कौशल नरेश को मुक्त कर दिया।
Saturday, October 22, 2011
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