किसी राजा को अपने मंत्रियों में से एक बहुत प्रिय था। वह राजा का विश्वासपात्र था। राजा हर मामले में उसकी सलाह जरूर लेता था। कुछ ईर्ष्यालु स्वभाव वाले मंत्रियों-दरबारियों को यह सहन नहीं होता था। उनमें से कुछ ने एक दिन राजा से शिकायत की। वे बोले, 'अपराध क्षमा हो, राजन! जिस मंत्री को आप अपना प्रिय व विश्वासपात्र समझते हैं वास्तव में वह भ्रष्टाचारी है। राज्य में जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, इसका मुख्य कारण यह मंत्री ही है।' यह सुनकर राजा ने अपने उस प्रिय मंत्री को उन मंत्रियों के सामने बुलाया और कहा, 'ये लोग तुम्हारे ऊपर जो आक्षेप लगा रहे हैं उसके निराकरण के लिए तुम्हें एक सप्ताह का समय दिया जाता है। तुम्हें खुद को निर्दोष सिद्ध करना पड़ेगा नहीं तो दंड भुगतना पड़ेगा।' उस मंत्री ने अपने घर आकर राजा को एक पत्र लिखा, 'राजन! अपमानित होने से मरना अच्छा है, इसलिए मैं मरने जा रहा हूं, अलविदा।' और मंत्री पत्र लिखकर अज्ञात स्थान पर चला गया।
राजा ने पत्र पढ़ा और उसकी छानबीन की। मंत्री के न मिलने से राजा ने उसे मृत समझकर शोकसभा आयोजित की। वह मंत्री भी वेश बदलकर अपनी शोकसभा में पहुंचा। वहां उपस्थित जन समूह उसको श्रद्धांजलि दे रहा था। शिकायत करने वाले भी कह रहे थे, 'मंत्री जी बहुत ईमानदार, विश्वासपात्र व उच्च विचारों वाले व्यक्ति थे। उनकी असामयिक मृत्यु से हम सब दुखी हैं।' यह सुनते ही वह मंत्री अपने असली रूप में आ गया। उसे देख उसके विरोधियों के होश उड़ गए। मंत्री ने राजा से कहा, 'देखा महाराज। इन लोगों की राय कैसे बदल गई। अगर मैं बुरा था तो आज ये मेरी प्रशंसा क्यों कर रहे हैं। क्या आप ऐसे लोगों पर विश्वास करेंगे जिनके विचार हमेशा बदलते रहते हैं।' राजा को अपनी भूल का अहसास हो गया। उसने उस मंत्री को गले से लगाया और उन लोगों को राजसेवा से निकाल बाहर किया जिन्होंने मंत्री की शिकायत की थी।
Saturday, October 22, 2011
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