Thursday, October 20, 2011

शांति का रास्ता

एक बार एक सेठ स्वामी विवेकानंद से मिलने पहुंचा। उसने उन्हें एक थैला देते हुए कहा, 'स्वामी जी, इसमें सोने के एक हजार सिक्के हैं। मैं इसे आप के आश्रम के लिए दान दे रहा हूं।' विवेकानंद ने उससे पूछा, 'आप क्या करते हैं?' सेठ बोला, 'स्वामी जी, मैं कपड़े का आढ़ती हूं। मेरे पास सब कुछ है मगर शांति नहीं है। हर समय मैं बेचैन रहता हूं।' स्वामी जी ने थैला खोला और वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को एक- एक सिक्का देने लगे। यह देख सेठ परेशान होकर बोला, 'स्वामी जी, आप यह क्या कर रहे हैं? यह धन तो आप के आश्रम के लिए है।'

विवेकानंद ने कहा, 'अब इन सिक्कों से तुम्हें क्या मतलब है। अब ये तो तुम्हारे हैं नहीं। अब इसे मैं जैसे चाहूं खर्च करूं।' सेठ बोला, 'स्वामी जी, यह सब मेरा नहीं है मगर इस धन को अनावश्यक रूप से खर्च किए जाने पर मुझे दुख हो रहा है। मैं जानता होता कि आप ऐसा करेंगे तो मैं आप को देता ही नहीं।' विवेकानंद ने कहा, 'जब तुम दूसरे के धन को अपना समझ कर उसके बंधन से बंधे हो तो अपने धन के प्रति तुम्हारा मोह तो बहुत ज्यादा होगा। यह ठीक है कि तुम्हारा कर्म पैसे कमाना है मगर अपनी कमाई से तुम गरीबों की भलाई भी करोगे तो तुम्हारी बेचैनी अपने आप दूर हो जाएगी। साधु-संतों को दान देने से तुम्हें शांति नहीं मिलेगी।' यह सुन कर सेठ शर्मिंदा हो गया और उसने वचन दिया कि वह अपनी कमाई का पचीस प्रतिशत गरीबों की सेवा में खर्च करेगा।

No comments:

Post a Comment