Tuesday, October 18, 2011

सादगी का पाठ

ईरानी बादशाह अब्बास शिकार के लिए जंगल में भटक रहे थे। वहां उनकी भेंट एक चरवाहे बालक से हुई, जिसका नाम था मुहम्मद अली बेग। बादशाह उसकी हाजिरजवाबी से बेहद प्रभावित हुए और उसे अपने साथ ले आए। उन्होंने उसे अपना खजांची बना दिया।

अली बेग पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम करने लगा। शाह अब्बास की मृत्यु के बाद उनका अल्पवयस्क पोता शाह सफी राजगद्दी पर बैठा। किसी ने शाह के कान भर दिए कि अली बेग राज्य के धन का गलत इस्तेमाल कर रहा है। शाह ने उस प्रकरण की जांच स्वयं अपने पास रखी और एक दिन बिना सूचना के उसकी हवेली का निरीक्षण करने जा पहुंचा।

शाह ने हवेली के सब कमरों का निरीक्षण किया। थोड़ी सी वस्तुओं के अतिरिक्त वहां कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। शाह निराश लौटने लगा तो खोजियों के संकेत पर शाह की नजर एक बंद कमरे की ओर गई। उसमें तीन मजबूत ताले लटक रहे थे। अब शाह की शंका को कुछ आधार मिला।

उन्होंने पूछा, 'इसमें क्या चीज है, जिसके लिए इतने मजबूत ताले लगाए हैं?' ताले खोले गए। शाह ने कमरे के बीच मेज पर एक लाठी, सुराही, कुछ बर्तन, कुछ पोशाक और दो मोटे कंबल देखे। अली बेग ने कहा, 'जब स्वर्गीय शाह मुझे यहां लाए थे, उस समय मेरे पास यही वस्तुएं थीं और आज भी मेरे पास अपना कहने को यही हैं। मैं इन चीजों से ही प्रेरणा ग्रहण करता हूं और उसी स्तर का जीवन बनाए रखता हूं।' युवा बादशाह यह देखकर लज्जित हो गया।

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