Thursday, October 20, 2011

दान का महत्व

सेठ जमनादास गांधीजी के चरखा संघ के अध्यक्ष थे। चरखा संघ का सारा हिसाब-किताब वही रखते थे। एक बार गांधीजी एक सभा में चरखा संघ के महत्व के बारे में लोगों को बता रहे थे और कह रहे थे कि इसका सारा खर्च चंदे से ही चलता है। उनके बगल में जमनादास बैठे थे। सभा खत्म होने के बाद लोग लाइन लगा कर चरखा संघ के लिए दान पात्र में चंदा डालने लगे। कतार में एक बहुत गरीब बुढि़या भी थी। वह दान पात्र में चंदा न डाल कर गांधीजी के पास आने लगी।

स्वयंसेवकों ने उसे गांधीजी के पास जाने से रोक दिया। स्वयंसेवकों को ऐसा करते देख गांधीजी ने कहा, 'मां को मेरे पास आने दो।' बुढि़या ने गांधीजी के पास पहुंच कर एक पोटली खोली और एक अधेला (आधा पैसा) उनके चरणों में रखते हुए कहा, 'मेरे पास कुल जमा पूंजी इतनी ही है।' गांधीजी ने उस अधेले को माथे से लगाया और बोले, 'मां, हमारे लिए तो आप का दिया हुआ धन सबसे ज्यादा है।'

सेठ जमनादास सब कुछ देख रहे थे। सभी लोगों के जाने के बाद गांधीजी ने दान पात्र का सारा पैसा जमनादास को दे दिया मगर बुढि़या द्वारा दिया गया एक अधेला अपने पास रख लिया।


जमनादास ने कहा, 'बापू, आप ने एक अधेला नहीं दिया।' गांधीजी बोले, 'उसे मैं अपने पास रखूंगा।' जमनादास ने कहा, 'चरखा संघ को मिलने वाले हजारों रुपये मैं ही लेता हूं। पर इस अधेले के लिए आप को मुझ पर विश्वास नहीं है।' गांधीजी ने कहा, 'यदि किसी व्यक्ति के पास हजारों रुपये हों और वह उसमें से सौ रुपये दे दे, तो कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन उस बुढि़या के लिए यह अधेला ही सारी जमा पूंजी थी जो उसने दान कर दी। कितना बड़ा त्याग किया है उसने। उसका अधेला मेरे लिए करोड़ों से ज्यादा है। जब तक यह मेरे पास रहेगा, मुझे दान के महत्व का अहसास कराता रहेगा।'

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