फ्रांस के महान विचारक रूसो उस समय बालक थे। वह अकसर छुट्टियों में अपने चाचा के घर जाते थे। चाचा के लड़के फेजी से उनकी गहरी मित्रता थी। घर से थोड़ी दूर पर रूसो के चाचा का कारखाना था। एक बार जब रूसो चाचा के घर गए तो फेजी ने उनके सामने कारखाना चलने का प्रस्ताव रखा। रूसो मान गए। दोनों बच्चे कारखाना पहुंचकर वहां की मशीनों को देखने लगे। रूसो का हाथ एक मशीन के पहिये पर था। उस समय फेजी का ध्यान कहीं और था। उसने उसी मशीन का पहिया घुमा दिया। इससे रूसो की उंगलियां पिस गईं। रक्त का फव्वारा फूट पड़ा और वह असहनीय दर्द से कराह उठे। फेजी उनकी हालत देख डर गया।
उसने तुरंत मशीन को उलटा घुमाया और रूसो की उंगलियां मशीन से बाहर निकालीं। फेजी डरा हुआ था। उसने रूसो से कहा, 'भैया चिल्लाओ मत, पिताजी सुन लेंगे तो मेरी खूब पिटाई करेंगे।' रूसो ने बलपूर्वक अपना मुंह बंद रखा। कुछ देर बाद उंगलियों से खून बहना बंद हो गया। फेजी ने एक कपड़ा फाड़कर पट्टी बांध दी। जब दोनों घर पहुंचे तो सबने घाव के बारे में पूछा। रूसो ने सभी को गोलमोल जवाब दिया कि जरा सी चोट लग गई है। इस बात के चालीस साल बीत गए। फिर एक पारिवारिक समारोह में रूसो और फेजी की मुलाकात हुई। फेजी ने सभी को इस घटना के बारे में बताया। जब लोगों ने रूसो से पूछा कि उन्होंने झूठ क्यों कहा, तो इस पर वह बोले, 'जिंदगी में कभी-कभार इस तरह का खूबसूरत झूठ बोलने में कोई हर्ज नहीं है।'
Tuesday, October 18, 2011
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