Saturday, October 22, 2011

उदारता की राह

पंडित मदनमोहन मालवीय का कहना था कि यदि मूक जीवों का कष्ट समझकर हम इंसान उनके हित में कुछ कर सकें तो शायद इससे बढ़कर दूसरा कोई पुण्य नहीं होगा। यह बात उनके आचरण में हमेशा दिखती थी। उनके भीतर प्राणी मात्र के लिए दया थी। इससे जुड़ी एक घटना बड़ी चर्चित है। मालवीय जी किसी जरूरी काम से कहीं पैदल जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक कुत्ता छटपटाता दिखाई दिया। उसके कान के पास एक घाव था और वह पीड़ा के मारे इधर-उधर भाग रहा था। उसकी कराह सुनकर मालवीय जी से रहा नहीं गया। उन्होंने अपना काम निपटाने का विचार छोड़ा और पशु चिकित्सालय दौड़ते हुए गए।

वैद्य जी को कुत्ते की तकलीफ बताकर दवा मांगी। वैद्य जी ने दवा तो दे दी, मगर बोले, 'मदनमोहन, ऐसे कुत्ते प्राय: पागल हो जाते हैं। छूने पर काट भी लेते हैं। तुम इस खतरे में न पड़ो तो अच्छा है।' किंतु मालवीय जी नहीं माने। वह कष्ट में पड़े किसी प्राणी से मुंह नहीं फेर सकते थे। उन्होंने दवा लेकर एक लंबे बांस में कपड़ा लपेटा और कुत्ते को ढूंढने लगे। कुत्ता एक संकरी गली में बैठा था। मालवीय जी ने पहले कपड़े पर दवा लगाई फिर बांस की सहायता से कुत्ते को दवा लगाना शुरू किया। कुत्ता गुर्राता, दांत निकालता और झपटने की भी कोशिश करता रहा, किंतु मालवीय जी बिना डरे उसे दवा लगाते रहे। जब कुत्ते की पीड़ा कम हुई तो वह सो गया। तब मालवीय जी को शांति मिली और वह अपने कार्य के लिए रवाना हुए।

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