दार्शनिक हिक्री के पास रोज ढेरों लोग परामर्श लेने आते थे। लोग प्राय: उन्हें अपने पारिवारिक जीवन की उलझनें बताते और उनसे उनका कोई समाधान पूछते। हिक्री सबको समान भाव से सलाह दिया करते थे।
एक दिन एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ उनके पास आया और पत्नी के आलस्य और कंजूसी की निंदा करने लगा। हिक्री ने उस औरत को स्नेहपूर्वक अपने पास बुलाया। फिर उन्होंने अपने एक हाथ की मुट्ठी बांधकर उसके सामने की और पूछा, 'यदि यह हमेशा ऐसे ही रहे तो क्या नतीजा निकलेगा?' पहले तो वह औरत सकपकाई, पर साहस कर बोली, 'अगर यह मुट्ठी हमेशा ऐसे ही बंधी रहेगी तो हाथ अकड़कर निकम्मा हो जाएगा।' उस औरत का उत्तर सुनकर हिक्री बहुत प्रसन्न हुए।
फिर उन्होंने दूसरे हाथ की हथेली बिल्कुल खुली रखकर फिर पूछा, 'यदि यह हाथ ऐसे ही खुला रहे तो फिर इस हाथ का क्या होगा?' स्त्री बोली, 'ऐसी हालत में ये भी अकड़ कर बेकार हो जाएगा।' हिक्री ने लोगों से कहा, 'यह तो बुद्धिमान भी है और दूरदर्शी भी। यह तो अच्छी तरह जानती है कि मुट्ठी बंद रखने और सीधा हाथ रखने से क्या हानि होती है।' फिर उन्होंने स्त्री से कहा, 'बेटी, तुम तो सब कुछ खुद ही समझती हो। इस समझ का उपयोग अपने जीवन में भी करो, तुम्हारा सुख-सौभाग्य बढ़ेगा। किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती। न खुला हाथ अच्छा, न बंद हाथ। दोनों में संतुलन होना चाहिए। न लापरवाही से खर्च करो न ही कंजूसी से।' वह स्त्री हिक्री के संदेश को समझ गई।
Thursday, October 20, 2011
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