Saturday, October 22, 2011

परोपकार की सीख

अरब के एक खलीफा बेहद ईमानदार और न्यायप्रिय थे। एक बार वह बीमार हो गए। उनका काफी इलाज कराया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अपना अंत समय जान खलीफा ने खजांची को बुलाया और उससे पूछा, 'बताओ, खलीफा बनने के बाद मेरी निजी संपत्ति कितनी बढ़ी है?' खजांची ने हिसाब लगाया और बोला, 'हुजूर, आपकी निजी संपत्ति में एक ऊंट, एक दुशाला और एक बकरी का इजाफा हुआ है।' खलीफा ने उन्हें गरीबों में बांट देने का हुक्म दिया। इसके बाद उन्हें यह भी पता चला कि उन्होंने राजकोष से पांच हजार दिरहम लिए थे।

इस पर वह बोले, 'मेरा घर बेचकर पांच हजार दिरहम खजाने में जमा कर दिए जाएं और जो बचें उन्हें गरीब लोगों व अनाथ बच्चों में बांट दिया जाए।' इसके बाद वह अपने आसपास खड़े सभी लोगों से बोले, 'मेरी आखिरी यात्रा में सिर्फ तीन कपड़े मेरे जिस्म पर हों, जिनमें से दो तो इस वक्त मेरे शरीर पर हैं ही। तीसरा कपड़ा खरीद कर मुझ पर डाल दिया जाए।' यह सुनकर उनके कुछ मित्र बोले, 'हम तीनों नए कपड़े खरीद ही सकते हैं और फिर अंतिम यात्रा में तो नए कपड़े लिए जाने चाहिए, भला पुरानों से काम क्यों चलाया जाए?' उन मित्रों की बात सुनकर खलीफा बोले, 'अरे भाई, क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धरती पर नए कपड़ों की जरूरत मुर्दों के बजाय जिंदा लोगों को ज्यादा है। आप लोग कृपया जिंदा लोगों को ही नए कपड़े देने का प्रयास करें।' यह सुनकर सभी लोग खलीफा के प्रति श्रद्धा से भर उठे।

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