एक राजा को अपने लिए एक सेवक की आवश्यकता थी। उसने अपने मंत्री से कहा कि वह एक योग्य व्यक्ति ढूंढकर लाए। मंत्री ने दो दिनों के बाद एक व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उस व्यक्ति को अपना सेवक बना तो लिया, पर बाद में उसने मंत्री से कहा , 'वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंगरूप अच्छा नहीं है।' मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा।
एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने को कहा। वह सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। पर राजा ने जब पानी का घूंट पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके पानी फेंक दिया। राजा बोला, 'इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है।' मंत्री यह सब देख रहा था। मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया।
मंत्री ने राजा से पूछा, 'महाराज, सोने के पात्र का पानी आपको अच्छा नहीं लगा। लेकिन मिट्टी के पात्र का पानी क्यों अच्छा लगा?' राजा मौन रहा। इस पर मंत्री ने कहा, 'महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, किंतु शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है, लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। कोरे रंगरूप को न देखकर, गुण को देखें।' राजा को बात समझ में आ गई।
Tuesday, October 18, 2011
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