यह बहुत पुरानी कथा है। एक बार चेन्नई के निवासी रामानुजम ने अपने पुत्र को कुछ रुपये देकर बाजार से फल खरीद कर लाने को कहा। उन्होंने पुत्र को बार-बार समझाया कि फल खरीदने में किन बातों का ध्यान रखना होगा। बेटे ने सहमति में सिर हिलाया और रुपये लेकर बाजार की ओर चल दिया। बाजार में फलों की कई दुकानें थीं। वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि कहां से फल खरीदे। कुछ देर बाद जब वह घर लौटा तो उसके पिता यह देखकर हैरान रह गए कि वह खाली हाथ ही आया है। रामानुजम ने उससे कहा, 'बेटे, मैंने तुम्हें फल खरीदने भेजा था, लेकिन तुम तो ऐसे ही चले आए। फल क्यों नहीं लाए?' पिता की बात सुनकर पुत्र बोला, 'पिताजी, मैं खाली हाथ नहीं आया बल्कि मैं तो अपने साथ अमर फल लेकर आया हूं।'
पुत्र की बात सुनकर रामानुजम आश्चर्य से बोले, 'बेटे, तुम्हें क्या हो गया है? तुम ऐसी अजीबोगरीब बातें क्यों कर रहे हो? यह अमर फल क्या होता है और यह दिख क्यों नहीं रहा?' इस पर पुत्र ने कहा, 'पिताजी, मैं फल खरीदने के लिए बाजार गया। वहां पर अच्छी से अच्छी दुकानें सजी हुई थीं। तभी मैंने पास ही एक वृद्ध को भूख से छटपटाते हुए देखा। उनका छटपटाना मुझसे नहीं देखा गया और मैंने उन्हें उन रुपयों से भोजन करा दिया। भोजन करने के बाद उस वृद्ध ने मुझे ढेरों आशीर्वाद दिए जिससे मेरे मन को काफी संतुष्टि हुई। अब आप ही बताइए कि उस वृद्ध का दिल से दिया गया आशीर्वाद क्या किसी अमर फल से कम है?' बेटे का जवाब सुनकर पिता ने अपने पुत्र को गले लगाते हुए कहा, 'बेटा, तेरी करुणा भावना ने मुझे हिलाकर रख दिया है। निश्चय ही एक दिन तू मानवता के हित में बहुत बड़े काम करेगा।' पिता की बात सच साबित हुई। वह बालक आगे चलकर दक्षिण भारत के महान संत रंगदास के नाम से विख्यात हुआ।
Thursday, October 20, 2011
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