Saturday, October 22, 2011

तीन गहने

ईश्वरचंद्र विद्यासागर का बचपन बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीर सिंह गांव में बीता। एक बार ईश्वरचंद्र के मन में सवाल उठा कि गांव में सभी महिलाएं अच्छे - अच्छे गहने पहनती हैं , लेकिन उनकी मां कभी कोई गहना क्यों नहीं पहनती। एक दिन उन्होंने मां से बड़े प्यार से पूछा , ' मां , तुम्हें कौन - कौन से गहने अच्छे लगते हैं ?' मां हंसती हुई बोली , ' क्यों पूछ रहे हो बेटा ?' ईश्वर चंद्र ने कहा , ' जब मैं बड़ा होऊंगा न , तो तुम्हारे लिए ढेर सारे गहने बनवाऊंगा। ' यह सुन कर मां ने कहा , ' बेटा , मुझे बहुत सारे गहने तो नहीं चाहिए मगर तुम बनवा सको तो मेरे लिए तीन गहने अवश्य बनवाना। ' ईश्वरचंद्र ने पूछा , ' बताओ न मां , वे तीन गहने कौन - कौन हैं। '

मां बोली , ' बेटा , पहला गहना यह है कि तुम बड़े होकर गांव में एक स्कूल बनवाना। यहां एक भी स्कूल नहीं है। गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है। दूसरा गहना यह होगा कि गांव में एक दवाखाना बनवाना और तीसरा गहना यह होगा कि तुम यहां के अनाथ और गरीब बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था करना। मुझे यही गहने सबसे प्रिय हैं। ' यह सुन कर ईश्वरचंद्र की आंखों में आंसू आ गए।

वह बोले , ' मां , मैं आप की इच्छानुसार आप के ये तीनों गहने अवश्य बनवाऊंगा। ' उन्होंने उसी समय प्रण किया कि जब तक मां की इच्छा पूरी नहीं होगी वह दूसरा कोई काम नहीं करेंगे। बड़े होने पर उन्होंने सबसे पहले मां के नाम पर भगवती देवी विद्यालय की स्थापना की , फिर एक दवाखाना बनवाया और ऐसी व्यवस्था की कि गांव के गरीब और अनाथ बच्चे कभी भूखा न सोएं। उनके काम की प्रशंसा सुन कर एक दिन एक विद्वान उनके योगदान की सराहना करने आए। उन्होंने कहा , ' तुम्हारी समझ बहुत अच्छी है जो ऐसा काम कर रहे हो। ' ईश्वचंद्र ने कहा , ' यह मेरी समझ नहीं है। यह तो बचपन में मां की दी हुई शिक्षा का फल है। '

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