किसी नगर में एक भिक्षु आया। वह भजन गाता हुआ अपनी धुन में चला जा रहा था। तभी नगर की सबसे सुंदर नर्तकी ने उसे देखा। वह उस पर मोहित हो गई। वह दौड़कर उसके पास पहुंची। उसने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया। भिक्षु ने कहा , ' जरूर आऊंगा , पर अभी नहीं। अभी तुम समर्थ हो , तुम्हारे पास सब कुछ है। तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है। लेकिन इतना भरोसा रखना कि जिस दिन तुम्हें मेरी आवश्यकता होगी , उस दिन मैं तुम्हारे पास जरूर आऊंगा। ' यह सुनकर नर्तकी नाराज हो गई।
पहली बार किसी ने उसकी बात को नकारा था। उसने कहा , ' यह कहकर तुमने मेरा अपमान किया है। मेरे हजारों चाहने वाले हैं। मुझे तुम्हारी जरूरत कभी नहीं पड़ेगी। ' भिक्षु मुस्कराकर वहां से चला गया। बीस साल गुजर गए। नर्तकी का धन और यौवन दोनों खत्म हो गया। उसे कोढ़ हो गया। उसका शरीर गलने लगा। लोगों ने उसे शहर से बाहर निकाल दिया। एक दिन वह भूखी - प्यासी एक पेड़ के पास बैठी अपनी किस्मत को कोस रही थी कि अचानक किसी ने उसके सामने ठंडे जल से भरा बर्तन रख दिया। पानी पीकर उसके जाते प्राण लौट आए।
नर्तकी ने पूछा , ' तुम कौन हो ?' उस व्यक्ति ने जवाब दिया , ' मैं वही भिक्षु हूं , जिसे तुमने बीस साल पहले अपने घर आने का निमंत्रण दिया था। उस समय तुम्हें मेरी जरूरत नहीं थी। लेकिन आज जब कोई तुम्हें पहचानने को तैयार नहीं है , मैं तुम्हें पहचानता हूं। ' नर्तकी को अपनी भूल का अहसास हो गया। उसने भिक्षु से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।
Tuesday, October 18, 2011
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