Tuesday, October 18, 2011

सच्ची मानवता

एक बार लालबहादुर शास्त्री ने बिहार के कुछ लोगों को प्रधानमंत्री निवास पर मिलने का समय दिया। संयोग से उसी दिन एक विदेशी अतिथि के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन हो गया और शास्त्रीजी जी को वहां जाना पड़ा।

वहां से लौटने में उन्हें विलंब हो गया। बिहार से आए हुए लोग उनकी प्रतीक्षा में बैठे रहे। काफी समय बीत गया। आखिरकार निराश होकर वे लोग वहां से चल दिए। उनके जाने के कुछ देर बाद ही शास्त्रीजी लौट आए। आते ही उन्होंने अपने सचिव से पूछा , ' बिहार से कुछ लोग मुझसे मिलने आने वाले थे , क्या वे आ चुके हैं ?' सचिव बोला , ' वे आए तो थे लेकिन आपकी प्रतीक्षा करने के बाद अभी - अभी यहां से निकल गए। ' यह सुनकर शास्त्रीजी जी परेशान हो गए।

उन्होंने सचिव से पूछा , ' कुछ मालूम है कि वे लोग कहां गए हैं ?' सचिव ने कहा , ' वे कह रहे थे कि सामने के स्टॉप से बस पकड़नी है। ' शास्त्रीजी तुरंत बस - स्टॉप की ओर लपके। यह देखकर सचिव बोला , ' श्रीमान् आप यह क्या कर रहे हैं ? कोई देखेगा तो क्या कहेगा ?' इस पर शास्त्री जी बोले , ' कोई यह जानेगा कि प्रधानमंत्री ने अपने निवास पर बुलाकर अपने अतिथियों को वापस लौटा दिया है तो क्या कहेगा ?'

इस पर सचिव बोला , ' तो ठीक है , मैं उन्हें बस - स्टॉप से बुला लाता हूं । ' शास्त्रीजी बोले , ' नहीं , अब तो मुझे ही जाना पड़ेगा । मुझे विलंब के लिए उनसे क्षमा भी मांगनी है और क्षमा मांगने का इससे अच्छा तरीका और क्या होगा कि मैं खुद बस - स्टॉप पर जाकर उन्हें बुला लाऊं। ' इसके बाद शास्त्रीजी तेजी से बस - स्टॉप पर पहुंचे।

उन्होंने देखा कि वहां पर बिहार से आए उनके अतिथि मुंह लटकाए खड़े थे। शास्त्रीजी ने उनसे क्षमा मांगी और उन्हें वापस ले लाए। अतिथियों में से एक ने कहा , ' दिल्ली में वैसे तो बहुत कुछ देखा , लेकिन हम यह कभी नहीं भूलेंगे कि हमारे प्रधानमंत्री के भीतर सच्ची मानवता है। '

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