एक बार किसी संपन्न राज्य के राजा के पास एक साधु आए। राजा ने पूछा, 'आप की क्या सेवा करूं?' साधु बोले, 'महाराज, यह एक छोटा सा पात्र है, कृपया इसे भरवा दीजिए।' राजा बोला, 'महात्मा जी, इस छोटे से पात्र को अभी अमूल्य हीरे-जवाहरात व सोने-चांदी से भरवा देता हूं ताकि शेष जीवन आप को धन की जरूरत ही न पड़े।' राजा का आदेश पाते ही कोषाध्यक्ष ने उस पात्र को भरना शुरू कर दिया लेकिन वह भर ही नहीं पा रहा था। देखते-देखते सारा राजकोष खाली हो गया। राजा ने पूछा, 'महात्मा जी, यह बर्तन किस धातु का बना है। सारा खजाना खाली हो गया है लेकिन यह भर ही नहीं रहा।'
साधु बोले, 'यह मनुष्य की खोपड़ी की हड्डी से बना है। इस कपाल की लिप्सा कभी पूरी नहीं होती।' यह सुनते ही राजा चौंक पड़े और उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, 'आप की बात सुन कर मेरी उत्सुकता बढ़ गई है। कृपया विस्तार से बताएं।' साधु ने समझाया, 'राजन, तृष्णा एक ऐसा गहरा घड़ा है जिसे संपूर्ण पृथ्वी के हीरों आदि से भी नहीं भरा जा सकता है। यह तृष्णा मनुष्य को बंदर की तरह नाच नचाती है, कुत्ते की भांति दर-दर भटकाती है, उल्लू के समान सूरज के प्रकाश में भी अंधा बना देती है और मछली की तरह लोभ में फंसा कर जीवन को संकट में डाल देती है। तृष्णा के अनेक रूपों का शब्दों में वर्णन करना मेरी सीमा से बाहर है।' यह सुनते ही अचानक राजा की नींद खुल गई। उसके सपने ने एक बड़ी सीख दी थी।
Thursday, October 20, 2011
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