Tuesday, October 18, 2011

सर्वोत्तम ग्रंथ

गांधी जी के साथ उनके आश्रम में कुछ दिन रहे एक व्यक्ति ने देखा कि वे रामचरितमानस की बहुत प्रशंसा करते हैं और अक्सर उसके उद्धरण भी सुनाते रहते हैं। आश्रम से जाने के बाद उसने मानस का बडे़ ही मनोयोग से अध्ययन किया, फिर कुछ विद्वानों से भी उस पर बात की।

उसके बाद गांधी जी को एक पत्र लिखा, 'बापू, रामचरितमानस में स्त्री जाति की निंदा है, बालि के वध और विभीषण के देशद्रोह की प्रशंसा है। काव्य चातुर्य भी उसमें कुछ विशेष नजर नहीं आता। फिर भी आप उसे सर्वोत्तम ग्रंथ क्यों मानते हैं? समझ में नहीं आता कि आपके जैसा व्यक्ति इसके दोषों को नजरअंदाज कैसे कर गया? फिर आप हर समय इसका हवाला देते रहते हैं। आखिर दूसरों को इसके माध्यम से आप क्या संदेश देना चाहते हैं?'

गांधी जी पत्र पढ़कर मुस्कराए। फिर बाकी काम छोड़कर पहले उसी का जवाब देने बैठ गए। जवाब में गांधी जी ने लिखा, 'मेरे सामने ऐसे विचार पहले भी कुछ विद्वान लोग व्यक्त कर चुके हैं। वे दुर्भाग्य से अपने ज्ञान की सार्थकता रामचरितमानस को 'दोषों का पिटारा' साबित करने में ही समझते हैं। यूं तो वेद, कुरान और बाइबल के भी आलोचकों का अभाव नहीं हैं, पर जो गुणदर्शी हैं, वे उनमें दोष नहीं देखते। मानस को मैं सर्वोत्तम इसलिए नहीं कहता कि कोई उसमें एक भी दोष नहीं निकाल सकता, बल्कि इसलिए कहता हूं कि उससे करोड़ों लोगों को शांति मिलती है। वह भक्ति और अनुभवजन्य ज्ञान का भंडार है।' गांधी जी का जवाब पाकर उस व्यक्ति की आंखें खुल गईं।

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