फारस का एक राजा कलाकारों का अत्यधिक सम्मान करता था। उसके दरबार में दूर - दूर से चित्रकार , मूर्तिकार , लेखक और कवि आदि आते और अपनी रचनाओं पर भरपूर प्रशंसा व पुरस्कार पाते थे। एक दिन ग्रीस का एक ख्यात मूर्तिकार राजा के पास आया। उसने राजा को तीन मूर्तियां भेंट कीं और बोला - राजन , जब तक ये तीनों मूर्तियां आपके दरबार में रहेंगी , तब तक आपके राज्य में सुख - समृद्धि बनी रहेगी। राजा ने प्रसन्न होकर मूर्तिकार को इनाम में सोने के सिक्कों से भरा एक थैला दिया। राजा ने अपने सेवकों को उन मूर्तियों का ध्यान से रख - रखाव करने का आदेश दिया। आदेश का यथाविधि पालन होने लगा।
एक दिन एक सेवक के हाथ से सफाई करते वक्त एक मूर्ति गिरकर टूट गई। राजा को जैसे ही यह बात पता चली वह आगबबूला हो गया और उसने सेवक को मौत की सजा सुनाई। आदेश का सुनना था कि उस सेवक ने बाकी दो मूर्तियां भी पटक कर तोड़ डालीं। राजा इस गुस्ताखी से और भी गुस्से में आ गया , लेकिन साथ ही उसके इस कृत्य से वह आश्चर्यचकित भी था। किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू पा उसने इसका कारण पूछा। सेवक बोला - किसी न किसी के हाथ से तो ये मूर्तियां भी टूटनी ही थीं , इसलिए ऐसा करके मैंने दो अन्य व्यक्तियों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया है। सेवक की बात सुन राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने अपने आंख खोलने वाले उस सेवक को न केवल क्षमा किया , उसे दरबार में महत्वपूर्ण स्थान भी दिया।
Thursday, October 13, 2011
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