नैमिषारण्य में एक साधु ने छह साल तक एकांत में रह कर तपस्या की। जब उसे लगा कि वह ज्ञान की प्राप्ति के करीब है , उसने प्रभु से यह प्रार्थना कि उसे एक ऐसे आदर्श गुरु का पता दें जिसका अनुसरण कर वह आगे के साधना पथ पर आगे बढ़े। उसी रात साधु ने सपना देखा। सपने में प्रभु ने उससे कहा कि अगर वह सचमुच ऐसा चाहता है तो उस भिखारी का अनुसरण कर जो कवित्त पढ़ - पढ़ कर भीख मांगता रहता है।
सुबह उठते ही साधु ऐसे भिखारी की खोज में चल पड़ा। वह उनकी कुटिया से कुछ ही दूर मिला। साधु ने जब उसके द्वारा किए सत्कर्म पूछे तो भिखारी बोला - ' मुझसे मजाक मत कीजिए। मैंने न तो कोई सत्कर्म किया , न तपस्या की और न प्रार्थना। मैं तो कवित्त गाकर लोगों का मनोरंजन करता हूं और जो रूखी - सूखी मिलती है , खा लेता हूं। तब साधु ने पूछा - ' तू भिखारी कैसे बना , तूने फि जूलखर्ची में पैसे उड़ा दिए या दुर्व्यसन में ?'
भिखारी ने कहा - नहीं , मुझे जब पता चला कि एक गरीब स्त्री के पति और पुत्र कर्ज के बदले गुलाम बनाकर बेच दिए गए तो मैंने अपनी सारी संपत्ति साहूकार को देकर उसके पति व पुत्र को छुड़वा लिया। मेरी सारी संपत्ति चली जाने से मैं भिखारी हो गया। आजीविका का कोई साधन न रहने से मैं कवित्त गाकर अपना पेट पालता हूं और प्रसन्न रहता हूं।
भिखारी की कथा सुनकर साधु उससे बहुत प्रभावित हुआ और बोला - तू सचमुच आदर्श साधु है। तेरा अनुसरण करके ही मैं प्रभु का प्रेम पा सकता हूं।
Thursday, October 13, 2011
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