Friday, October 14, 2011

मंत्री की बुद्धिमानी

एक बार एक राजा ने सोचा कि उसके राज्य की सबसे बड़ी नदी पड़ोस के राज्य में चली जाती है , इसलिए क्यों न इसके पानी को रोककर उसका उपयोग अपनी प्रजा के हित में किया जाए। उसने अपने मंत्री के सामने यह विचार रखा तो मंत्री ने कहा , ' महाराज , न जाने कितनी सदियों से यह पानी बहकर उधर जाता है और लाखों लोग इसका उपयोग करते हैं। हम इस जल को रोककर बेवजह पड़ोस के राज्य से शत्रुता क्यों मोल लें।

किंतु राजा ने मंत्री की एक न सुनी और बोला , ' हमारा आदेश है कि नदी को आगे से भर दिया जाए ताकि इसका जल उस ओर जा ही न सके। ' ऐसा ही किया गया। गर्मी के दिनों में जब नदी में जल बहुत कम रह गया तो उस जल का सभी ने प्रयोग किया , लेकिन जैसे ही वर्षा आरंभ हुई , नदी में जल चढ़ गया। जल के आगे जाने का मार्ग दीवार बनाकर रोक दिया गया था। लेकिन इससे नदी का पानी नगर में प्रवेश कर लोगों के घरों में घुस गया। अब तो समूची प्रजा इधर - उधर भागने लगी। धीरे - धीरे पानी राजमहल तक जा पहुंचा।

राजा चिंतित हो उठा। यह देखकर मंत्री बोला , ' महाराज , मैंने तो आपसे पहले ही कहा था कि दूसरों का अहित करने से पहले मनुष्य अपना ही अहित करता है। ' इस पर भी राजा ने नदी की दीवार को तोड़ने के लिए नहीं कहा। मंत्री सोचने लगा कि आखिर राजा को कैसे समझाया जाए। अगले दिन राजा देर तक सोता रहा। बादल के कारण सूर्य नहीं निकला था। जब राजा ने अंधेरा होने का कारण जानना चाहा तो मंत्री बोला , ' महाराज , सूर्य की दिशा हमारे पड़ोसी राज्य में है। उन लोगों ने भी ठान लिया है कि सूर्य का केवल अपने लिए ही प्रयोग करेंगे। ' यह सुनकर राजा को अपनी भूल का अहसास हो गया। उसने उसी क्षण नदी की दीवार तुड़वाने का आदेश दिया।

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