स्वामी विवेकानंद ने आम आदमी का दुख - दर्द जानने के लिए देश - भ्रमण किया। उनके साथ उनके कई शिष्य भी थे। स्वामी जी ने भारत भर में इधर - उधर घूमते हुए तरह - तरह के लोगों से भेंट की। कभी वह किसी भिखारी के पास रुक जाते तो कभी किसी दुखी परिवार के साथ। उन्होंने राजाओं का अतिथि बनकर भी देखा और मंत्रियों से भी बातचीत की। वह जिससे भी मिलते , उसके जीवन के बारे में पूछते और उसे उलझनों से निकालने की कोशिश करते। वह सबको मानव सेवा में जुट जाने का संदेश देते थे।
एक बार एक सेठ से उन्होंने कहा , ' मित्र एक पेड़ पर दो पक्षी बैठे हैं। एक पक्षी फल खा रहा है और दूसरा फल खाने वाले को देख रहा है। जानते हो , खाने वाला पक्षी कौन है - जीव ! और देखने वाला कौन है - ईश्वर ! तुम यह क्यों सोचते हो कि तुम्हारे कार्यों को कोई नहीं देख रहा है। परमात्मा की पूर्ण दृष्टि सब पर रहती है। तुम अकेले मत खाओ। दूसरों को खिलाकर खाओ। '
उस समय वह सेठ कुछ समझ नहीं सका , लेकिन जब वह घर पहुंचा तो उसे स्वामी जी की बात याद आई। वह अपनी मेज पर खाना खाने जा रहा था कि उसके कान में पड़ोसी की आवाज आई। वह चौंक गया। वह पड़ोसी के घर की ओर दौड़ा। पता चला कि कि दो दिनों से उसके बच्चे भूखे हैं। उसकी पत्नी बच्चों को दिलासा दे रही थी। वह समझ गया कि स्वामी जी के कहने का मतलब क्या था। उसने पड़ोसी के घर अन्न - वस्त्र आदि भेजे और उससे क्षमा मांगी। दूसरे दिन जब वह स्वामी जी से मिला तो उसके भीतर गहरा संतोष था। स्वामी जी ने उसे देखते ही कहा , ' मित्र , तुमने जो कुछ किया है उससे ईश्वर संतुष्ट है। तुम्हारा कल्याण हो। ' सेठ विवेकानंद के चरणों पर गिर पड़ा। उसने अपने आंसुओं से उनके पांव भिगो दिए। विवेकानंद ने इसी तरह अनेक लोगों की जीवन दृष्टि बदल दी थी।
Thursday, October 13, 2011
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