यह उन दिनों की बात है, जब भारत पर चंद्रगुप्त मौर्य का शासन था। एक चीनी यात्री पाटलिपुत्र पहुंचा तो उसकी इच्छा चंद्रगुप्त के महामंत्री चाणक्य से मिलने की हुई। उनसे मिले बिना उसे अपनी भारत यात्रा अधूरी महसूस हो रही थी। लेकिन चाणक्य कहां रहते हैं, इसका पता चीनी यात्री को नहीं था। वह सुबह-सुबह घूमता हुआ गंगा किनारे पहुंचा। वहां उसने एक वृद्ध को देखा जो स्नान करके अपनी धोती धो रहे थे। वृद्ध ने धोती धोकर अपने घड़े में पानी भरा और वहां से चल पड़े।
यात्री ने उनसे कहा,' महाशय मैं चीन का निवासी हूं। भारत में काफी घूमा हूं। मौर्य शासन के महामंत्री आचार्य चाणक्य के दर्शन करना चाहता हूं। क्या आप मुझे उनका पता बता पाएंगे?' वृद्ध ने कहा, 'अतिथि की सहायता करके मुझे प्रसन्नता होगी। आप कृपया मेरे साथ चलें।' फिर आगे-आगे वृद्ध चले और पीछे-पीछे वह यात्री।
रास्ता नगर की ओर न जाकर जंगल की ओर जा रहा था। यात्री सोच रहा था कि चाणक्य के निवास स्थान तक पहुंचने का जरूर यह छोटा मार्ग होगा। थोड़ी देर बाद वृद्ध एक आश्रम के निकट पहुंचे, जहां चारों ओर शांति थी। फूल-पत्तियों से आश्रम घिरा हुआ था। द्वार पर पहुंचकर वृद्ध ने कहा, 'महामंत्री चाणक्य अपने अतिथि का स्वागत करता है। पधारिए महाशय।' यात्री भौंचक था। आखिर इतने बड़े साम्राज्य के महामंत्री का जीवन इतना सादगीपूर्ण हो सकता है, उसने सोचा तक न था। चाणक्य ने उसे भारतीय जीवन पद्धति में सरलता के महत्व के बारे में समझाया। वह चीनी यात्री चाणक्य के प्रति श्रद्धा से भर उठा।
Thursday, October 13, 2011
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