Friday, October 14, 2011

बच्चे की ईमानदारी

उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। जर्मन सेना पोलैंड पर हमला कर चुकी थी। सेना के एक अधिकारी पोलैंड के एक सुदूर गांव में बने अपने शिविर से कुछ सैनिकों के साथ घोड़ों के लिए चारा इकट्ठा करने निकले। अधिकारी ने गांव के एक बच्चे को पकड़कर कहा, 'चलकर बताओ कि यहां किस खेत में अच्छी फसल है?' बच्चा उनके साथ चल पड़ा। चारों ओर खेत लहलहा रहे थे। सभी की फसल बहुत शानदार दिखाई दे रही थी। सैनिक चाहते थे कि उन खेतों में से ही किसी एक की फसल काट लें, किंतु बच्चा बार-बार कहता था, 'कुछ और आगे चलिए, बहुत अच्छी फसल आप लोगों को बताऊंगा।'

सैनिकों को पोलैंड की सेना के जाल में फंस जाने की आशंका भी सता रही थी किंतु वे चलते रहे। धीरे-धीरे वह बच्चा सैनिकों को लगभग गांव की सीमा पर स्थित खेतों पर ले गया। वहां उसने एक खेत बताया। सैनिकों ने उस खेत से फसल काटकर गट्ठर बांधे और घोड़ों पर रख लिए। सैनिक अधिकारी बड़ी ही नाराजगी से बच्चे से बोले, 'तू हमें बेकार इतनी दूर ले आया। ऐसी फसल तो पास के खेतों में भी थी।' बच्चे ने कहा, 'मैं जानता हूं कि आप लोग खेत के स्वामी को फसल का मूल्य तो देने वाले हैं नहीं। तो फिर किसी दूसरे किसान का नुकसान कैसे कराता। यह मेरा अपना खेत है और मेरे लिए तो इसी की फसल सबसे अच्छी है।' यह सुन अधिकारी ने लज्जित होकर उस बच्चे को फसल के मूल्य के साथ-साथ पुरस्कार देकर भी सम्मानित किया।

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