Tuesday, October 18, 2011

साहस और संकल्प

मगध सम्राट कुमारगुप्त का पुत्र स्कंदगुप्त जब किशोर ही था, तब उसे पता चला कि हूण बार-बार भारत पर आक्रमण करते हैं और युद्ध के नियमों के विपरीत छल का सहारा लेकर भारी नुकसान पहुंचाते हैं। स्कंदगुप्त से देश का अपमान देखा न गया। उसने पिता से आग्रह किया कि उसे हूणों पर आक्रमण की आज्ञा दी जाए। पिता बड़े असमंजस में थे क्योंकि एक तो स्कंदगुप्त अभी किशोर ही था, शारीरिक बल और युद्ध कौशल की दृष्टि से उसे अभी बच्चा ही कहा जा सकता था। दूसरे, हूणों का क्षेत्र बहुत दूर था। हिमाच्छादित पहाड़ों की चोटियां पार कर के वहां जाना होता था। ऐसे दुर्गम मार्ग को पार करना सेना के लिए भी कठिन था, फिर हूण युद्ध में धोखे से ही काम लेते थे। ऐसी स्थिति में उसे आक्रमण की आज्ञा कैसे दी जाए?

लेकिन कुमारगुप्त अपने पुत्र की देशभक्ति और साहस देखकर झुक गए। उन्होंने उसे चढ़ाई की आज्ञा दे दी। स्कंदगुप्त दो लाख सैनिक लेकर चल पड़ा। पंजाब से आगे बढ़कर हिमाच्छादित चोटियों को पार करती हुई उसकी सेना हूणों के इलाके में पहुंची और इस वीरता के साथ लड़ी कि शत्रुओं के छक्के छूट गए। उन्हें परास्त होना पड़ा। इस तरह स्कंदगुप्त ने आज के ईरान और अफगानिस्तान तक अपना राज्य कायम किया। इस विजय अभियान के बाद जब स्कंदगुप्त भारत लौटा तो उसके स्वागत में मगध से पांच कोस तक मार्ग सजाए गए और पूरे देश में विजयोत्सव मनाया गया। सबने स्वीकार किया कि साहस और संकल्प से कोई भी कठिन लड़ाई जीती जा सकती है।

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