Friday, October 14, 2011

काम का महत्व

रूसी क्रांति के बाद का दौर था। देश की कमान लेनिन के हाथ में आ चुकी थी। क्रांति के बाद पूरे देश की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी। रूसी मजदूरों ने उस वक्त अपनी शनिवार की छुट्टी को, जो कानूनन उन्हें मिलती थी, स्वेच्छापूर्वक राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। उस दिन भी वे काम पर आते थे। लेनिन उनके अगुआ थे। वह कहते थे- 'साम्यवादियों का श्रम समाज निर्माण के लिए होता है।' वह किसी ईनाम या पुरस्कार की इच्छा से नहीं, बल्कि 'बहुजन हिताय' अर्पित किया जाता है। उन दिनों लेनिन के गले में तकलीफ थी क्योंकि एक हमलावर ने उन पर छर्रे भरी पिस्तौल चला दी थी। कुछ छर्रे तो निकाल दिए गए थे लेकिन कुछ गले में ही रह गए थे और बहुत कष्ट देते थे। फिर भी लेनिन कष्ट की परवाह न करते हुए मजदूरों का साथ देने के लिए स्वयं सुबह से शाम तक काम में जुटे रहते थे। मजदूर मना करते और कहते कि आप कोई हल्का काम ले लें, किंतु लेनिन नहीं मानते। बल्कि वह खेल-खेल में मजदूरों से मुकाबला करते कि कौन सबसे भारी काम कर सकता है। एक दिन एक मजदूर ने उनसे पूछा, 'श्रीमान् आप देश चलाते हैं। आपके पास कई बड़े-बड़े काम हैं, फिर भी आप इन छोटे कामों को महत्व क्यों देते हैं?' लेनिन ने उस मजदूर के कंधों पर हाथ रखा और कहा, 'देखो दोस्त, कोई काम छोटा नहीं होता। मुझमें और तुझमें कोई अंतर नहीं है। अगर है भी तो यही कि तेरी भुजाएं मुझसे बलिष्ठ हैं।' इतना कह कर वह ठठाकर हंस पड़े।

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