एक बार पेशवा बाजीराव ने अपने शत्रु राज्य के एक नगर को घेर लिया। घेरेबंदी कई दिनों तक चली। पेशवा इस प्रतीक्षा में थे कि शत्रु खुद ही आकर आत्मसमर्पण कर दे। तभी एक दिन उनके पास सूचना आई कि नगर में लोग भूख-प्यास से मर रहे हैं। न उनके पास खाने के लिए अन्न है न ही पीने के लिए पानी। पेशवा के सेनापति ने उनसे कहा, 'यही उपयुक्त समय है कि हम इस नगर पर आक्रमण कर दें। जीत हमारी ही होगी। हमारी सेना तैयार है। आप हमें आक्रमण की आज्ञा दें।' पेशवा ने कहा, 'बाजीराव नगर को जीतने आया है, इसे निगलने नहीं।'
सेनापति कुछ समझ न सका। अगले दिन पेशवा ने अपनी ओर से एक दरवाजा खोल दिया ताकि वहां की प्रजा के लिए अन्न-पानी और अन्य आवश्यक वस्तुएं भेजी जा सके। पेशवा के इस निर्णय पर उनके कुछ और सरदारों ने भी सवाल उठाए तो उन्होंने कहा, 'मैं युद्ध लड़ने के लिए जरूर आया हूं पर इतना निर्दयी नहीं हूं कि भूखे मनुष्य को मारकर उसकी छाती पर विजय पताका लहराऊं।
सच्चा योद्धा युद्ध में अपने कौशल से विजय प्राप्त करता है। वह छल से या मासूम लोगों को पीड़ा पहुंचाकर युद्ध नहीं जीतता। मनुष्यता के खिलाफ जाकर जीत हासिल करने का कोई अर्थ नहीं है।' जब वहां के राजा को इस बात का पता चला तो उसने तय किया कि वह पेशवा से नहीं लड़ेगा। उसने पेशवा के सामने हथियार डाल दिए और कहा कि पेशवा जो चाहें फैसला करें। पेशवा ने उसे मित्र बनाने का फैसला किया।
Thursday, October 13, 2011
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