एथेंस में सोलन नामक एक विद्वान संत रहते थे। उनकी विद्वता तथा त्याग से सभी प्रभावित रहते थे। अनेक व्यक्ति उनसे अपनी समस्या के समाधान कराते थे। सोलन विभिन्न स्थानों पर घूमते रहते थे। एक दिन भ्रमण करते-करते वे लीडिया नामक देश में जा पहुंचे। वहां के राज कारूं को संत सोलन के आगमन का पता चला। उसने उनके काफी चर्चे सुन रखे थे। उसने आदरपर्वूक सोलन को अपने महल में बुलवाया। संत राजा के महल में आए।
कुछ देर बातें करने के बाद राजा कारूं अभिमानपूर्वक संत सोलन से बोला, 'महाराज, आपने मेरा देश और महल तो देख ही लिया। यह देखकर आपको क्या लगता है? भला इस दुनिया में कोई मुझसे ज्यादा सुखी और संपन्न हो सकता है?' राजा के अभिमान भरे शब्दों को सुनकर संत सोलन सहज भाव से बोले, 'संसार में सुखी उसी को कहा जा सकता है जिसका अंत सुखमय हो।' संत का यह कथन कारूं को अच्छा नहीं लगा। संत वहां से चले गए। कुछ समय बाद कारूं ने फारस राज्य पर आक्रमण कर दिया। लेकिन वहां के राजा साइरस ने उसे हराकर गिरफ्तार कर लिया। जब राजा कारूं को साइरस के सामने प्रस्तुत किया गया तो उसने कारूं को जीवित जला डालने की सजा सुना डाली। अब कारूं को संत सोलन के कहे शब्द याद आए कि जिसका अंत सुखमय है वही सुखी है। जब उसे प्राणदंड के लिए ले जाया जाने लगा तो वह 'हाय सोलन, हाय सोलन' करके रोने लगा।
राजा साइरस संत सोलन का बहुत बड़ा भक्त था। जब उसने कारूं के मुंह से संत सोलन का नाम सुना तो दंग रह गया। उसने कारूं से पूछा, 'तुम संत सोलन का नाम क्यों ले रहे हो?' इस पर कारूं बोला, 'मैं उनके कथन को याद कर अपनी वाणी को उनके नाम से पवित्र कर रहा हूं।' यह सुनकर साइरस ने कारूं को तुरंत आजाद कर दिया। राजा कारूं संत सोलन का भक्त बन गया ।
Thursday, October 13, 2011
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