Thursday, October 13, 2011

वृक्ष का सम्मान

गौतम बुद्ध एक दिन एक वृक्ष को नमन कर रहे थे। उनके एक शिष्य ने यह देखा तो उसे हैरानी हुई। वह बुद्ध से बोला, 'भगवन, आपने इस वृक्ष को नमन क्यों किया?' शिष्य की बात पर बुद्ध बोले, 'क्या इस वृक्ष को नमस्कार करने से कुछ अनहोनी घट गई?' शिष्य बुद्ध का जवाब सुनकर बोला, 'नहीं भगवन! ऐसी बात नहीं है, किंतु मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि आप जैसा महान व्यक्ति इस वृक्ष को नमस्कार क्यों कर रहा है? यह न तो आपकी बात का जवाब दे सकता है और न ही आपके नमन करने पर प्रसन्नता व्यक्त कर सकता है।'

शिष्य की बात पर बुद्ध ने कहा, 'भंते, तुम्हारा सोचना गलत है। वृक्ष मुझे जवाब बोल कर भले ही न दे सकता हो किंतु जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक भाषा होती है, उसी प्रकार प्रकृति और वृक्षों की भी एक अलग भाषा होती है। अपना सम्मान होने पर वे झूम कर प्रसन्नता और कृतज्ञता दोनों ही व्यक्त करते हैं। इस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने साधना की, इसकी पत्तियों ने मुझे शीतलता प्रदान की, धूप से मेरा बचाव किया।

हर पल इस वृक्ष ने मेरी सुरक्षा की। इसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मेरा कर्त्तव्य है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति के प्रति सदैव कृतज्ञ बने रहना चाहिए क्योंकि प्रकृति व्यक्ति को सुंदर व सुघड़ जीवन प्रदान करती है। तुम जरा इस वृक्ष की ओर देखो कि इसने मेरी कृतज्ञता व धन्यवाद को बहुत ही खूबसूरती से ग्रहण किया है और जवाब में मुझे झूम कर यह बता रहा है कि आगे भी वह प्रत्येक व्यक्ति की हरसंभव सेवा करता रहेगा।' बुद्ध की बात पर शिष्य ने वृक्ष को देखा तो उसे लगा कि सचमुच वृक्ष एक अलग ही मस्ती में झूम रहा था और उसकी झूमती हुए पत्तियां, शाखाएं व फूल मन को एक अद्भुत शांति प्रदान कर रहे थे। यह देखकर शिष्य स्वत: वृक्ष के सम्मान में झुक गया

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