Thursday, October 13, 2011

अनोखी सजा

तब इंग्लैंड में एडवर्ड सप्तम का शासन था। लेकिन वे इंग्लैंड के मुख्य न्यायाधीश के सामने अपराधी के रूप में खडे़ थे। उन्होंने स्वयं अपने अपराध का पूरा विवरण देते हुए न्यायाधीश से न्याय की मांग की थी। न्यायाधीश ने सम्राट की बात सुनी तो एकदम सन्न रह गया। उसकी समझ में न आया कि सम्राट को क्या सजा दी जाए। किंतु बिना कुछ व्यवस्था दिए भी स्थिति को टाला नहीं जा सकता था।

न्यायाधीश ने मन ही मन विचार करने के बाद अपना निर्णय दिया कि चूंकि मामला सम्राट का है, अत: इसकी न्याय प्रक्रिया भी विशेष ढंग की ही होनी चाहिए। मैं चाहता हूं कि इस मामले को उन सब न्यायालयों को भेजा जाए जो सम्राट की शासन-सीमा में आते हों। फिर उनके न्यायाधीशों की बहुमत राय को ही न्याय माना जाए।

सम्राट समझ गया कि न्यायाधीश ने चतुराई से अपनी बला दूसरे के सिर मढ़ दी है, किंतु मुख्य न्यायाधीश के निर्णय को भी वह भला क्या चुनौती देता। तो जिन-जिन देशों में एडवर्ड सप्तम का शासन फैला था, उन-उन सब देशों के न्यायालयों में वह केस न्याय के लिए भेज दिया गया। एक निश्चित समय के भीतर सब अदालतों ने अपना निर्णय इंग्लैंड भेज दिया। किंतु उनमें से लगभग सभी फैसलों में सम्राट को क्षमा किया गया था, हालांकि उनके तर्क अलग-अलग थे।

हां, मद्रास उच्च न्यायालय के तत्कालीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर टी. मुथुस्वामी ने अपने निर्णय में लिखा, हमें सर्वप्रथम तो यह बात भूलनी है कि फैसला सम्राट के केस का है क्योंकि कानून की नजर में न कोई सम्राट होता है और न भिखारी। फिर न्यायालय का यह भी कर्तव्य हो जाता है कि ऐसी विषम स्थिति में फैसला इस ढंग से दिया जाए कि वह फैसला दूसरों के लिए एक उदाहरण बन सके। इसलिए मेरे विचार से सम्राट का ताज उतार कर एक करोड़ सिक्कों में उन्हें नंगे सिर वाला दिखाया जाए और उन सिक्कों को पूरे साम्राज्य में फैला दिया जाए। मैं समझता हूं कि सम्राट की शोभा भी इसी में है कि वे इस फैसले से स्वयं को अपमानित न मानकर इसे शिरोधार्य करें। सम्राट को सर मुथुस्वामी का ही फैसला मान्य रहा। टकसाल में एक करोड़ मुद्राएं ढाली गईं और साम्राज्य भर में चालू की गईं।

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