किर्चनर एक बहुत बड़े खगोल शास्त्री थे। उनके विषय में एक कहानी प्रचलित है। उनका एक नास्तिक मित्र था। वह हमेशा कहा करता था कि मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता। उस दोस्त को समझाने के लिए उन्होंने एक सरल सा तरीका सोचा। उन्होंने पृथ्वी का एक नमूना (ग्लोब) बनवाया और अपने उस मित्र को अगली सुबह चाय पर आमंत्रित किया।
दूसरे दिन जब उनका मित्र आया, तो उसका ध्यान सर्वप्रथम मेज पर रखे, ग्लोब पर गया। किर्चनर उसे बार-बार उंगलियों से नचा रहे थे और आनंद ले रहे थे। मित्र ने कहा, सुंदर है, किसने बनाया? किर्चनर ने कहा, यह अपने आप बन गया। मित्र हंसने लगा। जब वह चुप हुआ तो किर्चनर ने कहा, तुम इसलिए हंसे, क्योंकि मैंने बिलकुल बेतुकी, हास्यास्पद बात कह दी।
तुम्हारा हंसना ठीक है। पर जरा सोचो कि किस बात पर विश्वास करना अधिक सरल होगा, यह छोटा सा ग्लोब स्वयं बन गया होगा या इसे किसी ने बनाया होगा? यदि तुम्हें लगता है कि यदि यह ग्लोब अपने आप नहीं बन सकता तो फिर यह सोचो कि यह विशाल ग्लोब, जिस पर हम रहते हैं, यह भी अपने आप कैसे बना होगा?
जब तक मानव स्वयं अपनी आंखों से नहीं देख लेता, तब तक उसका किसी चमत्कार या करामात पर विश्वास करना कठिन होता है। पर यदि गौर से देखें तो हमारे चारों ओर चकाचौंध कर देने वाले अनेक चमत्कार भरे पड़े है। फिर भी हम किसी प्रकार की उथल-पुथल महसूस नहीं करते। कभी-कभी हम सोचते हैं कि यह ग्रह अर्थात हमारी पृथ्वी विश्व का केंद्र है, पर शून्य के महासागर में हमारा ग्रह एक बूंद मात्र है।
अभी तक वैज्ञानिक इस ब्रह्मांड के एक छोटे से अंश का भी निरीक्षण नहीं कर सके हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार यदि हम इस पूरे ब्रह्मांड की यात्रा करें, तो उस यात्रा में छह अरब प्रकाश वर्ष से भी ज्यादा समय लग जाएगा।
Thursday, October 13, 2011
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