Tuesday, October 18, 2011

सेवा का संदेश

यह घटना उस समय की है जब स्वामी शिवानंद सरस्वती जी महाराज मलाया में रहकर चिकित्सा कार्य करते थे। उन दिनों अंग्रेजों के रबर के बगीचों में अनेक भारतीय भी काम करते थे। अधिकतर भारतीय निर्धन थे। स्वामी जी एक बगीचे के पास स्थित अपने क्लीनिक में रोगियों की चिकित्सा करते थे। एक दिन एक बहुत ही गरीब श्रमिक अपनी पत्नी को साथ लेकर उनके पास पहुंचा। उसकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार थी और बुरी तरह कराह रही थी। यह देखकर स्वामी जी द्रवित हो उठे और तुरंत उसके इलाज में लग गए। जब श्रमिक ने देखा कि स्वामी जी बिना कुछ कहे उसकी पत्नी का इलाज कर रहे हैं तो वह रोता हुआ बोला, 'स्वामी जी, मेरे पास इस समय आपको देने के लिए एक रुपया तक नहीं है। मैंने तो यह भी नहीं पूछा कि आप मेरी पत्नी के इलाज की कितनी फीस लेंगे। इलाज करने के बाद यदि मैं आपकी फीस न चुका पाया तो क्या होगा? कृपया आप मुझे अपनी फीस बताइए ताकि मैं उसका इंतजाम कर सकूं।'

श्रमिक की बात सुनकर स्वामी जी बोले, 'परेशान होने की जरूरत नहीं है। पहले मुझे इसकी जांच तो कर लेने दो। वह ठीक हो जाए फिर फीस भी आ ही जाएगी।' स्वामी जी ने श्रमिक की पत्नी की बीमारी का पता लगाकर उसके लिए जड़ी-बूटियां बनाईं और उसे पिलाईं। कुछ देर बाद वह श्रमिक को अनेक दवाइयां और उसके साथ ही कुछ रुपये देते हुए बोले, 'इस समय तुम्हारी पत्नी को इन दवाइयों के साथ ही पौष्टिक भोजन व फल की भी सख्त जरूरत है। तुम इन दवाइयों के साथ इसे फल, दूध व अन्य पौष्टिक आहार देते रहना। कुछ ही दिनों में यह स्वस्थ हो जाएगी। जब कभी तुम्हारे पास रुपये आ जाएं तो किसी रोगी व जरूरतमंद की मदद कर देना। समझ लेना मुझे मेरी फीस मिल गई।' यह सुनकर श्रमिक स्वामी जी के प्रति नतमस्तक हो गया

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