समरकंद के शासक उमर शेख नेकदिल और न्यायप्रिय थे। एक बार चीनी यात्रियों का एक दल उनके राज्य की सीमा में बर्फीले तूफान में फंस गया। किसी की जान न बच पाई। उन यात्रियों का सामान व बहुत सारा धन वहीं दबा रह गया। उमर शेख को जब इसका पता चला तो उन्होंने अपने सैनिकों को सामान व धन की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया। इसके बाद उन्होंने चीन के सम्राट के पास सूचना भिजवाई कि उनके कुछ नागरिकों की यहां मृत्यु हो गई है और उनका काफी सारा धन एवं सामान वहां पर मिला है जिसे उन्होंने सुरक्षित अपने पास जमा करा लिया है।
उन्होंने चीनी शासक से अनुरोध किया कि वह अपने कर्मचारियों को समरकंद भेजें ताकि मृत यात्रियों की चीजें उनके परिजनों तक पहुंचाई जा सकें। चीनी सम्राट यह जानकर बेहद दुखी हुआ लेकिन उसे यह जानकर प्रसन्नता भी हुई कि समरकंद के शासक में नेकी और परोपकार की भावना कूट - कूट कर भरी है। उसने संदेश मिलते ही अपने सैनिकों को वह सामान व धन वापस लाने के लिए भेजा और बाद में स्वयं भी उमर शेख से मिलने पहुंचा। वह उमर शेख से मिलकर भावुक होकर उनके गले लग गया और बोला , ' धन्य हैं आप जैसे लोग जिनके दिल में नेकी और परोपकार जीवित है। '
यह सुनकर उमर शेख बोले , ' हमने तो सिर्फ इंसानियत निभाई है। ऐसी इंसानियत प्रत्येक इंसान को निभानी चाहिए। ' यह सुनकर चीनी शासक के मुंह से स्वत : निकला , ' आप सही कहते हैं। मैं भी आगे से कोशिश करूंगा कि मेरे अंदर भी ऐसी भावनाएं आएं। '
Friday, October 14, 2011
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