कलकत्ता के सुप्रसिद्ध विद्वान और समाज सुधारक थे रामतनु लाहिड़ी। पूरे शहर में एक सदाचारी व्यक्ति के रूप में भी उनकी प्रतिष्ठा थी। लाहिड़ी बाबू उन दिनों कृष्णनगर कॉलेजियट स्कूल के प्रधानाध्यापक थे। सहककर्मी शिक्षक और छात्र भी उनसे काफी प्रभावित थे, क्योंकि वह अत्यंत सहजता से जीवनोपयोगी बातें समझा दिया करते थे। साथ ही उनका व्यवहार अत्यंत मधुर और अपनत्व से भरा था।
एक दिन वह अपने मित्र अश्विनी कुमार के साथ कहीं जा रहे थे। दोनों मित्र बातें करते हुए सड़क के एक ओर से चले जा रहे थे। इसी दौरान लाहिड़ी बाबू की नजर कुछ दूर से आते एक व्यक्ति पर पड़ी। उसे देखते ही लाहिड़ी बाबू ने बात बंद कर दी और अचानक सड़क के दूसरी ओर चले गए ताकि वह व्यक्ति इन्हें न देख सके। अश्विनी कुमार को उनका यह व्यवहार थोड़ा विचित्र लगा। जब वह व्यक्ति चला गया तो लाहिड़ी बाबू फिर इस ओर लौटकर आए।
अश्विनी कुमार ने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा, तो वह बोले, 'उन सज्जन ने मुझसे कुछ रुपये उधार लिए थे। जब वह मुझसे मिलते हैं, तभी कोई न कोई तारीख बताकर कहते हैं कि उस तारीख को रुपये दे देंगे, मगर दे नहीं पाते। उन्हें देखकर मैं उधर इसलिए चला गया कि मेरे कारण किसी को झूठ क्यों बोलना पड़े। मैं इस तरह कुछ देर के लिए उन्हें एक गलत कार्य करने से रोकता हूं।' उनकी बातों से अश्विनी कुमार बेहद प्रभावित हुए। वह समझ गए कि दूसरों के द्वारा की जाने वाली अनीति को रोकना मनुष्यता की सच्ची पहचान है।
Friday, October 14, 2011
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