Thursday, October 13, 2011

रम और विचार

राजा अग्निमित्र और श्रेष्ठि सोमपाल गहरे मित्र थे। एक दिन उनमें बहस हो गई। सोमपाल ने कहा, 'राज्य का संरक्षण उपयोगी तो है, पर अनिवार्य नहीं। ईश्वरप्रदत्त साधनों से मनुष्य मजे में रह सकता है।'

राजा ने चुनौती दी, 'अच्छा, एक वर्ष नगर में मत घुसना, जंगल की सीमा में रहना। यदि इस दौरान कुछ उल्लेखनीय कर के दिखा सके तो हार मान लूंगा।' सोमपाल सीमित साधन लेकर जंगल पहुंचे। वहां एक लकड़हारा मिला जो अपनी निर्धनता से दुखी था। सोमपाल ने उसे उत्साहित किया, 'तुम मुझे श्रम से सहायता देना, मैं तुम्हें विचार से मदद दूंगा।' लकड़हारा राजी हो गया। सोमपाल उससे कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने लगे और उसे नगर के समाचार लेने भेज दिया। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर वे जलाऊ और इमारती लकड़ी नगर भेजने लगे। धीरे-धीरे काम बढ़ निकला , तो और अधिक मजदूर बुलाए गए। नगरवासी उस व्यवस्था का लाभ उठाने लगे। तभी पता लगा कि विशाल यज्ञ होने वाला है। सोमपाल ने यज्ञीय समिधाओं तथा सुगंधित वनौषधियों का संग्रह कर लिया। यज्ञ संयोजकों को सूचना मिली, तो अच्छे मूल्य पर तैयार वस्तुएं खरीद ली गईं। सब आश्चर्यचकित थे कि यह सब कर कौन रहा है।

राजा को जब सचाई का पता लगा तो स्वयं अपने मित्र से मिलने गए। उन्होंने सोमपाल से पूछा, 'तुम तो शहर में घुसे नहीं, फिर यह सब कैसे विकसित किया?' सोमपाल बोले 'मित्र, यह मेरी विचारशक्ति और लकड़हारे की शारीरिक शक्ति का संयोग है। इसी से वन-संपदा नगरवासियों के लिए महत्वपूर्ण बनी, बगैर राजसंरक्षण के।' अग्निमित्र ने हार मान ली।

No comments:

Post a Comment