घटना उस समय की है, जब महात्मा गांधी को छह वर्ष के लिए यरवदा जेल भेजा गया। जेल सुपरिटेंडेंट अंग्रेज था। वह गांधीजी को ब्रिटिश अंग्रेज साम्राज्य का सबसे बड़ा शत्रु मानता था, इसलिए जब बापू के लिए कोई सेवक देने का अवसर आया, तो उसने एक अश्वेत अफ्रीकी को बापू की सेवा में लगा दिया। वह अफ्रीकी न तो हिंदी समझता था और न ही अंग्रेजी। केवल इशारों से ही उससे काम लिया जा सकता था। गांधीजी सुपरिटेंडेंट की धूर्तता को भांप गए। फिर भी उन्होंने कोई ऐतराज नहीं किया। वह उस अफ्रीकी से ही सहयोग लेने लगे। गांधीजी की कोशिश थी कि वह उनके प्रति पूरी तरह सहज हो जाए।
एक दिन उस अफ्रीकी को बिच्छू ने काट लिया तो वह भागा-भागा गांधीजी के पास पहुंचा और बिच्छू के काटे हुए स्थान को दिखाकर उनसे सहायता मांगने लगा। गांधीजी ने तुरंत उसका उपचार शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में उसकी जलन शांत हो गई। फिर गांधीजी ने उसे कुछ दवाएं दीं और उस दिन काम न करने की छूट भी। वह अफ्रीकी गांधीजी से बेहद अभिभूत हुआ। उसे अपने जीवन में किसी भी अन्य व्यक्ति से इतना प्यार कभी नहीं मिला था। उस घटना के बाद वह बापू का भक्त बन गया और बड़े मनोयोग से उनकी सेवा करने लगा। गांधीजी और उसके बीच आत्मीय रिश्ता बन गया, जिसे देखकर जेल अधिकारी आश्चर्य में पड़ गया। उसने तो गांधीजी को परेशानी में डालने के लिए उस अफ्रीकी को उनकी सेवा में रखा था, पर हुआ ठीक उलटा। यह गांधीजी के सच्चे स्नेह का जादू था।
Tuesday, October 18, 2011
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