प्रतापगढ़ के राजा सुल्तान सिंह का राज्य बेहद विशाल था। राज्य में सब ओर सुख-शांति व खुशहाली थी। लेकिन कोई संतान न होने के कारण सुल्तान सिंह चिंतित रहते थे। प्रतापगढ़ का कोई उत्तराधिकारी नहीं है, यह सोचकर उनके शत्रु उनकी मृत्यु का इंतजार कर उनके राज्य पर कब्जा करने की सोच रहे थे। राजा ने अपनी यह चिंता विद्वान मंत्री कुशल सिंह को बताई। कुशल सिंह ने गुपचुप राज्य के उत्तराधिकारी की खोज शुरू कर दी। मंत्री ने समूचे राज्य से अनेक युवकों की परीक्षा ली, जिनमें पांच युवकों को सबसे योग्य पाया।
उन्होंने बिना कुछ कहे इन पांचों युवकों को एक-एक पत्र दिया और कहा कि इस पत्र को बिना पढ़े राजा सुल्तान सिंह को सौंपना है। इसमें आप पांचों का बहुत गहरा राज छिपा है जो मैंने आपके बीच में रहकर जाना है। पत्र सौंपते ही पांचों युवक राजा सुल्तान सिंह से मिलने चले। रात में वह एक धर्मशाला में रुके। सुबह उठने पर चार युवक वहां नहीं थे। केवल एक ही बचा था। उसे समझ में नहीं आया कि बाकी चारों कहां चले गए। लेकिन उसे पहले अपना काम पूरा करना था। इसलिए वह राजा के पास पहुंचा और पत्र उन्हें थमा दिया। पत्र पढ़कर राजा ने युवक को बंदी बनाने को कहा। युवक परेशान हो उठा।
तब राजा ने पत्र पढ़कर सुनाया जिसमें लिखा था कि यह युवक गद्दार है और इसे तुरंत फांसी की सजा दी जाए। वह युवक कुछ कहता इससे पहले मंत्री कुशल सिंह वहां पहुंच गए और उन्होंने घोषणा की, 'महाराज, यही युवक प्रतापगढ़ का सही उत्तराधिकारी है। चारों युवकों ने बिना इजाजत के पत्र पढ़ा और सजा के डर से भाग गए किंतु यह युवक परीक्षा में खरा उतरा।' राजा सुल्तान सिंह को सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने उस युवक को भावी उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इस प्रकार मंत्री की समझदारी से राज्य को एक होनहार उत्तराधिकारी मिल गया।
Friday, October 14, 2011
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