Thursday, October 13, 2011

सच की ताकत

स्वामी विवेकानंद ने युवावस्था में ही अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व विकसित कर लिया था। जो उनसे मिलता, उनकी प्रतिभा का कायल हो जाता। उनके अंग्रेज प्राध्यापक भी उनसे प्रभावित रहते थे। एक बार उनके कॉलेज के प्रिंसिपल डब्ल्यु. डब्ल्यु. हेस्टी उनकी कक्षा में आए। किसी प्रसंग पर उन्होंने पूछा, 'नरेन! यह बताओ नास्तिक कौन है?' यह सुनकर नरेन ने कहा, 'सर, नास्तिक वह होता है जो अपने में विश्वास नहीं करता। ईश्वर में विश्वास नहीं करता।' इस उत्तर को सुनकर हेस्टी साहब कुछ देर के लिए अवाक रह गए। फिर उन्होंने कुछ सोचकर कहा, 'तो इसका अर्थ यह है कि ईश्वर कहीं नहीं है।' इस पर नरेन ने दृढ़तापूर्वक कहा, 'ईश्वर है सर। वह भारत के उन दरिद्र पीडि़त और दुर्बल लोगों में है जिन्हें कभी तुर्क और मुगल शासक नोचते रहे और आजकल आपकी सरकार नोच रही है।' इस निर्भीक उत्तर को सुनकर हेस्टी साहब चकित रह गए। उन्होंने कहा, 'मैंने सुदूर देशों का भ्रमण किया है, पर अभी तक मुझे कहीं भी ऐसा लड़का नहीं मिला, जिसमें तुझ जैसी प्रतिभा और संभावनाएं हों। तू जीवन में जरूर अपनी छाप छोड जाएगा।' और इतना कहकर हेस्टी साहब कक्षा से बाहर चले गए। छुट्टी के समय उन्होंने नरेन को अपने ऑफिस में बुलाया फिर बड़े प्यार से बिठाते हुए कहने लगे, 'नरेन तुमने क्लास में मुझसे जो कुछ कहा, वह बिल्कुल सच है। लेकिन मंै तुम्हें हिदायत देता हंू कि ऐसा बातंे किसी और अंग्रेज के सामने मत कहना, कभी मत कहना।' नरेन ने सवाल किया, 'क्यों सर!' हेस्टी साहब बोले, 'वह तुम्हारी रिपोर्ट कर देगा। हमारी सरकार तुम्हंे जेल भेज सकती है।' यह सुनकर नरेन ने मुस्कराते हुए कहा, 'सर! यदि सच बोलने से आपकी सरकार मुझे जेल भेज देगी, तो मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि भारत का हर व्यक्ति मेरी तरह सच कहने लगे और आपकी सरकार सबको जेल का पानी पिलाने लग जाए।'

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