Friday, October 14, 2011

विनम्रता का पाठ

संत रमन्ना के आश्रम में अनेक लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते थे। एक दिन एक जिज्ञासु व्यक्ति आया और संत के पास शीघ्र पहुंचने के लिए जल्दी से अपने जूते उतारने लगा। जूते आसानी से नहीं उतरे, तो क्रोध में उसने किसी तरह पैर पटककर उन्हें उतारा और तेजी से आश्रम के दरवाजे को धकेल कर संत के पास पहुंच गया। आते ही उसने कहा, 'बाबा, मैं आपसे अपनी समस्या का समाधान जानने आया हूं।' संत बोले, 'तुम्हारी समस्या का समाधान असंभव है।'

वह व्यक्ति आश्चर्य से बोला, 'भला मेरी समस्या का समाधान क्यों नहीं होगा?' संत ने कहा, 'क्योंकि तुम ठीक से व्यवहार करना ही नहीं जानते। जो विनम्र नहीं हो सकता, उसका काम भी सफल नहीं होता।' व्यक्ति ने पूछा, 'पर मेरे व्यवहार में क्या दोष है?' संत बोले, 'कदम-कदम पर है। तुम अकारण क्रोध में वस्तुओं को नुकसान पहुंचाते हो। तुमने अभी-अभी जूते और दरवाजे पर क्रोध किया। जाओ उनसे माफी मांगो।'

वह व्यक्ति हैरानी से बोला, 'मैं बेजान चीजों से माफी मांगूं?' संत बोले, 'तुम बेजान वस्तुओं के साथ भी सही ढंग से व्यवहार नहीं कर सकते और चाहते हो कि ईश्वर व संसार तुम्हारे साथ उचित व्यवहार करे। यदि तुमने इन वस्तुओं को वास्तव में बेजान समझा होता तो तुम इन पर क्रोध ही नहीं करते। विनम्रता से सारी समस्याओं के समाधान स्वयं हो जाते हैं।' वह व्यक्ति संत का आशय समझ गया। उसने उन वस्तुओं के साथ-साथ संत से भी माफी मांगी और आगे से हमेशा हर किसी के साथ विनम्रता से पेश आने का वचन दिया।

No comments:

Post a Comment